शुक्रवार, 18 मई 2018

जीतने देती नहीं जिंदगी ना हार मान रहा हूँ मैं...



वक़्त  का  खेल  बड़ा  बेहिसाब  है
बिलकुल  ऐसे  जैसे  एक  बंद  किताब  है
हर  पन्ना  पलट  कर  पढ़ना  पड़ता  है  यहाँ
वक़्त  कैसा  भी  हो  जीना  पड़ता  है  यहाँ,

क्या  छिपा  है  वक़्त  के  पिटारे  में  जानना  है
दुनिया  को  जान  लिया  खुद  को  पहचानना  है
एक  मन  है  हमारा  जिसकी  खोज-बीन  जारी  है
बड़ी  नींदों  के  सौदों  पर  छोटे  सपने  भारी  हैं,

सिंधु-सागर  से  मोती  खोजने  की  तैयारी  है
खाली  हाथ  हैं  अभी  तक  मगर  संघर्ष  जारी  है
बैठा  हुआ  किनारों  पर  लहरें  निहार  रहा  हूँ  मैं
जीतने  देती  नहीं  जिंदगी  ना  हार  मान  रहा  हूँ  मैं।