सोमवार, 12 दिसंबर 2016

( मेरी वफाओं का सिलसिला )






क्या  तुम  आज  भी  बसते  हो
मेरे  दिल  में  मेरे  ख्यालों  में
तमाम  हसरतों  और  अरमानों
को  जलाने  के  बाद  भी,

क्या  ये  प्यार  आज  भी
जिन्दा  है  कहीं  मुझमें
जैसे  जीती  है  कोई  शाख
पेड़  सूख  जाने  के  बाद  भी,

प्यार  की  तलाश  में
बहुत  भटका  हूँ  मैं
क्या  मेरी  मंजिल  तुम  ही  थी
अगर  ये  सच  है  तो
तुमने  इतना  क्यों  तड़पाया  मुझको,

आँखों  से  ओझल  थे
पर  दिल  के  करीब  थे  तुम
हमेशा  से  दूर  थे
 पर  दिल  के  करीब  थे  तुम,

मेरी  ज़िंदगी  थे  मेरा  नसीब  थे  तुम
जुदाई  के  पतझड़  में
बसंत  का  गीत  थे  तुम,

आँखों  में  बसती  है  सूरत  तुम्हारी
पर  कभी  इन  आँखों  में  देखा  नहीं  तुमने
धड़कन  में  बसती  है  मोहोब्बत  तुम्हारी
पर  कभी  इस  धड़कन  को  सुना  नहीं  तुमने,

खताओं  का  सिलसिला
आज  भी  जारी  है
सजाओं  का  सिलसिला
आज  भी  जारी  है,

फिर  भी  कहता  हूँ,  आज  मैं
दिल  खोल  कर  तुमसे,


मेरी  वफाओं  का  सिलसिला
कल  भी  जारी  था  आज  भी  जारी  है।

                                                                            मनोज यादव

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

मुझे तेरे दिल में रहना है ( मान जाओ )


 
 
 
मुझे तेरे दिल में रहना है ( मान जाओ )

एक  मासूम  सा  चेहरा  है 
दो  आँखें  कजरारी  है,
दिल  अपना  हम  हार  गये
मुस्कान  ही  इतनी  प्यारी  है,
उनकी  शोख  अदाओं  ने
हमको इतना  है  तड़पाया,
नींद  ना  आयी  रातों  में
और  दिन  में  चैन  नहीं  आया,
मन  करता  है  तुम  सामने  हो
मैं  दिल  का  हाल  बयां  करूँ,
पर  एक  तरफ़ा  है  प्यार  मेरा
खोने  से  भी  तुमको  डरूँ,
इकरार  मैं  करना  चाहता  हूँ
इनकार  ना  मुझको  करना  तुम,
इतनी  फरियाद  है  इस  दिल  की
बस  प्यार  मुझी  से  करना  तुम,
तुम  बिन  तो  जी  ना  पाऊंगा
इतना  ही  मुझको  कहना  है,
हो  मेरी  एक  छोटी  सी  दुनिया
मुझे  तेरे  दिल  में  रहना  है ।


मनोज यादव 
 
 
 
 
 

 

शनिवार, 30 जुलाई 2016

तेरी चाह में, मैंने खुद को पा लिया



खुशियाँ  नहीं  मिली  तो  क्या,  ग़मों  को  पा  लिया,
आसमाँ  नहीं  मिला  तो  क्या,  ज़मीन  को  पा  लिया,
मुकम्मल  जहां  नहीं  मिलता,  बखूबी  जानता  हूँ  मैं,
पर  तेरी  चाह  में,  मैंने  खुद  को  पा  लिया ।।



( सारी  जिन्दगी  गुजार  दी  तन्हा,
   उन्ही  लोगों  ने,
   जो  कहते  थे,
   प्यार  नाम  की  कोई  चीज़  नहीं  इस  जहान  में ) 

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

इन बारिश की बूंदों में




जाने  कैसा  गीत  छुपा है,  इन  बारिश  की  बूंदों  में,
जाने  कैसा  साज  सजा  है, इन  बारिश  की  बूंदों में,
प्रेम  गीत  कोई  मैं  लिख  दूँ,  कहता  है  पागल  मन  मेरा,
अंग-अंग  में  खुमार  चढ़ा  है,  इन  बारिश  की  बूंदों  में ।। 

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सजनी मेरे मन का गीत






सावन  में  जब  घनघोर  घुमड़कर

काले  बादल  छाते  हैं 
प्यासी  व्याकुल  धरती  पर  जब 
मीठा  जल  बरसाते  हैं 

वृक्ष  समूह  और  लताएँ 
नए  यौवन  को  पाते  हैं 
कलरव  करते  पक्षी-गण  जब 
झूम-झूम  कर  गाते  हैं 

जब-जब  बारिश  में  भीग  तेरी 
जुल्फों  का  अंजुम  खुल  जाता  है 
कतरा-कतरा  बहता  पानी  जैसे 
मदिरा  बन  जाता  है 

आँखों  के  पैमाने  तेरे  कुछ  और 
नशीले  होते  है 
कुछ  और  गुलाबी  होते  हैं  कुछ  और 
सजीले  होते  हैं 

देख  जिन्हे  हम 
अपने  तन  की 
सारी  सुध-बुध  खो  देते  हैं 

मेरे  मन  में  कोई 
सतरंगी  इंद्र-धनुष  जाता  है  खींच 
जैसे  स्वाती  की  बूंदों  से  पगला 
चातक  करता  है  प्रीत 

सांसों  की  सरगम  पर  गाता  हूँ 
सजनी  मेरे  मन  का  गीत।


मंगलवार, 28 जून 2016

तेरा नाम लिखा मैंने (नयी प्रकाशित हिन्दी कविता )

मेरी  यह  नयी  कविता  जो  अनहद  कृति  नामक  पत्रिका  में  छपी  है,  वो  मैं  आपके  सम्मुख  रखता  हुँ,

( सावन  के  मनभावन  मौसम  के  अनुरूप )













                       तेरा  नाम  लिखा  मैंने



दिल  की  सुर्ख  दीवारों  पर
तेरा  नाम  लिखा  मैंने
कुछ  अपनी  प्रीत  लिखी  मैंने
कुछ  तेरा  प्यार  लिखा  मैंने


तन  चंदन  तेरा  मन  चंदन
जिसमे  शीतलता  रखती  हो
चाँदी  सा  तन  रखती  हो
और  सोने  सा  मन  रखती  हो


कंचन  सा  है  रूप  तेरा
फूलों  सी  मुस्कान  तेरी
मद-मस्त  महकता  यौवन तेरा
और  हिरनी  सी  चाल  तेरी
बलखाते  ये  बाल  तेरे
और  गुलाबी  गाल  तेरे
चंचलता  तितली  सी  तुझमें
और  खंजन  से  नैन  तेरे

तेरे  गालों  को  चूम  रही
तेरे  कानों  की  बाली  है
कारे-कजरारे  नैनों  की
कुछ  बात  ही  अजब  निराली  है


नैन  तेरे  हैं  मैखाना  और
होंठ  तेरे  मय  के  प्याले
ये  दीवाना  मदहोश  हुआ
पीकर  मदिरा  के  ये  प्याले


बिजली  सी  चमक तेरी
तुम  गंगा-जल  सी  पावन  हो
धरती  की  प्यास  बुझाने  वाले
सावन  सी  मन-भावन  हो


पावस  की  प्रथम  फुहारों  में
लब  पर  आया  कोई  गीत  हो  तुम
हो  कल्प-वृक्ष  की  सोनजुही  तुम
मेरे  मन  के  मीत  हो  तुम

इसलिये  हृदय  की  वीणा  पर
ये  गान  लिखा  मैंने
कुछ  अपनी  प्रीत  लिखी  मैंने
कुछ  तेरा  प्यार  लिखा  मैंने।।

शनिवार, 25 जून 2016

मेरी वफाओं का सिलसिला !!!








क्या  तुम  आज  भी  बसते  हो
मेरे  दिल  में  मेरे  ख्यालों  में
तमाम  हसरतों  और  अरमानों
को  जलाने  के  बाद  भी,

क्या  ये  प्यार  आज  भी
जिन्दा  है  कहीं  मुझमें
जैसे  जीती  है  कोई  शाख
पेड़  सूख  जाने  के  बाद  भी,

प्यार  की  तलाश  में
बहुत  भटका  हूँ  मैं
क्या  मेरी  मंजिल  तुम  ही  थी
अगर  ये  सच  है  तो
तुमने  इतना  क्यों  तड़पाया  मुझको,

आँखों  से  ओझल  थे
पर  दिल  के  करीब  थे  तुम
हमेशा  से  दूर  थे
 पर  दिल  के  करीब  थे  तुम,

मेरी  ज़िंदगी  थे  मेरा  नसीब  थे  तुम
जुदाई  के  पतझड़  में
बसंत  का  गीत  थे  तुम,

आँखों  में  बसती  है  सूरत  तुम्हारी
पर  कभी  इन  आँखों  में  देखा  नहीं  तुमने
धड़कन  में  बसती  है  मोहोब्बत  तुम्हारी
पर  कभी  इस  धड़कन  को  सुना  नहीं  तुमने,

खताओं  का  सिलसिला
आज  भी  जारी  है
सजाओं  का  सिलसिला
आज  भी  जारी  है,

फिर  भी  कहता  हूँ,  आज  मैं
दिल  खोल  कर  तुमसे,


मेरी  वफाओं  का  सिलसिला
कल  भी  जारी  था  आज  भी  जारी  है,

लाख  कोशिश  करूँ  मगर  मजबूर  इतना  हूँ  की
तुम्हारे  लिए  मेरी,

दुआओं  का  सिलसिला  कल  भी  जारी  था
दुआओं  का  सिलसिला  आज  भी  जारी  है। 


बाके बिहारी ये अर्जी मेरी है !!!!!!!!!!









पंछी  मुझे  बना  दो  कान्हा
वंशीवट  वट  पर  करू  बसेरा
नित्य  ही  तुम  बजाओ  बंसी
गोपियन  का  लग  जाये  फेरा

कुञ्ज-गलिन  में  घूमे  मिलकर
यमुना  तट  पर  करे  बसेरा
फोड़े  मटकी  मिलकर  हम-तुम
माखन  का  लग  जाये  ढेरा

और  रहे  ना  हसरत  बाकी
बस  मिल  जाये  साथ  जो  तेरा
बाके  बिहारी  ये  अर्जी  मेरी  है
इससे  आगे  मर्जी  तेरी  है।


जय  श्री  कृष्णा 
बाके  बिहारी  लाल  की  जय 
जय  जय  श्री  राधे  !!!!




गुरुवार, 9 जून 2016

वृन्दावन के वृक्ष को

वृन्दावन   के  वृक्ष  को  मरहम  न  जाने  कोय, 
यहाँ  डाल  डाल  और  पात  पात  श्री  राधे  राधे  होय।


बुधवार, 18 मई 2016

तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के










गीत 
तुम  चली  आओ  चुनर   प्यार  की  ओढ़  के 

अपने  चपल  नयनों  में  गोरी,
कर  काजर  का  यूं  श्रृंगार,
अधरों  पर  यूं   मुस्कान  बिखेर,
के  ज्यों  लागे  मोतियन  के  हार,
और  गुलाबी  चेहरे  पर,  मतवाली  लट  बिखेर  के,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.…… 

तेरी  जुल्फों  के  साए  में  जिन्दगी  सुहानी  लगती  है,
पीपर  की  छाया  भी  हमको  स्वर्ग  सरीखी  जंचती  है,
कोयल  की  हर  कूक  मेरे  मन  को  घायल  कर  जाती है,
तितली  मन  की  बगिया  में  रंग  नए  भर  जाती  है,
और  पवन  बसंती  का  हर  झोंका  जैसे  जाता  है  कोई  तरंग  छेड़  के,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.……

सजनी  खंजन  से  ये  नैन  तेरे  मेरे  हृदय  को  भेदित  करते  है,
कानों  के  झुमके  तेरे  गालों  से  ठिठोली  करते  हैं,
तेरे  चेहरे  की  गरिमा  से  मेरा  तन-मन  पिघला  जाता  है,
तेरे  नूपुरों  का  स्वर  जैसे  कोई  मधुर  गीत  सा  गाता  है,
तेरी  वाणी  का  हर  एक  बोल  जैसे  जाता  है,  कानों  में  मिसरी  घोल  के ,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.……

तेरे  साथ  ही  मैं  अपना  संसार  बसना चाहता हूँ ,
जीवन  का  हर  एक  गीत मै तेरे संग गाना चाहता हूँ ,
वीरानी लगती हैं तुम बिन मेरे मन की सारी गलियाँ ,
मेरे दिल के बागीचे  की सारी कुंजन सारी कलियाँ ,
साज़ रहित मेरे जीवन में, तुम चली आओ नयी प्रेम धुन छेड़  के ,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……








 
 

गुरुवार, 12 मई 2016

रोम-रोम मेरा वृन्दावन हो गया









थोड़ी    खुशियाँ   तुम   चुन  लेना
थोड़ी    खुशियाँ   हम   चुन   लेंगे
थोड़ा  सपने  तुम   बुन  लेना
थोड़े  सपने  हम   बुन   लेंगे

साथ  रहेंगे  खुशी  से  दोनों  हम
घर  को  मिल  वृन्दावन  कर  लेंगे।



बांसुरी  के  स्वरों  सा  मन  हो  गया
मोर  पंख  सा  तन  हो  गया
हे !  कृष्णा  जब  से  आये  हो  जीवन  में
रोम-रोम  मेरा  वृन्दावन  हो  गया।

मंगलवार, 10 मई 2016

कान्हा कितने प्यारे








छोड़  के  पानी  राधा  रानी 

 कान्हा   को    निहारे 

सोच  रही  यह  बैठी   बैठी 

कान्हा  कितने  प्यारे

ये अल्फ़ाज तेरे होते











काश  तुम  मेरे  होते
सांसे  भी  थम  जाती
अगर
ये  अल्फ़ाज  तेरे  होते


सांसों  को   आस   तुम्हारी  है
आँखों  को  प्यास  तुम्हारी  है
बेचैन  मुझे  कर  जाती  है  आकर  तनहाई  में
हर  धड़कन  में  बसने   वाली  वो  आवाज़  तुम्हारी  है ।

रविवार, 8 मई 2016

ना जाने लोग प्यार करते क्यों हैं ( कविता )





कितनी  दर्द  भरी  हैं
मोहोब्बत  की  राहें
फिर  भी  ना  जाने  लोग
गुजरते  क्यों  हैं,


जब  प्यार  निभाना 
आता   ही   नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
प्यार  करते  क्यों  हैं,


दिल  तो  दिल  होता  है 
किसी  का  कोई  खिलौना  नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
दिल  तोड़ते  क्यों  हैं,


कस्में  खाते  हैं
सात  जन्मों  तक  साथ  निभाने  की
 फिर  भी  ना  जाने  लोग
साथ  छोड़ते  क्यों  हैं,

कोई  तो  जान  देता  है 
उनकी  एक  मुस्कराहट  पर 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उससे  मुँह  फेरते  क्यों  हैं,

दुनियां  है  पैसे  वालों  की  साहब 
ग़रीब  के  पास  तो  बस  जज़्बात  हैं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उसके  जज्बातों  से  खेलते  क्यों  हैं ।

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अज़ीब  कश्मकश  रही  दोस्तों
अपनी  अधूरी  कहानी  में,



"उनको  चाहिए  थी  महलों  की  रंगीनियाँ 
और  हमारे  पास  अपने  अरमाँ  ही  थे  सजाने  को 

उनकी  ज़िन्दगी  में  कमी  थी  रोशनी  की 
और  हमारे  पास  अपना  दिल  ही  था  जलाने  को "









शनिवार, 7 मई 2016

कालिया दमन घाट, वृन्दावन







कालिया  दमन  घाट, वृन्दावन 

कालीयदमनघाट-  इसका  नामान्तर  कालीयदह  है।  यह  वराहघाट  से  लगभग  आधे  मील  उत्तर  में  प्राचीन  यमुना  के  तट  पर  अवस्थित  है।  यहाँ  के  प्रसंग  के  सम्बन्ध  में  पहले  उल्लेख  किया  जा  चुका  है।  कालीय  को  दमन  कर  तट  भूमि  में  पहुँच  ने  पर  श्रीकृष्ण  को  ब्रजराज  नन्द  और  ब्रजेश्वरी  श्री  यशोदा  ने  अपने  आसुँओं  से  तर-बतरकर  दिया  तथा  उनके  सारे  अंगो  में  इस  प्रकार  देखने  लगे  कि  'मेरे  लाला  को  कहीं  कोई  चोट  तो  नहीं  पहुँची  है।'  महाराज  नन्द  ने  कृष्ण  की  मंगल  कामना  से  ब्राह्मणों  को  अनेकानेक  गायों  का  यहीं  पर  दान  किया  था।

चीर घाट, वृन्दावन









चीर घाट


चीर  घाट,   वृन्दावन

इस  मन्दिर  की  परिक्रमा  करने  से  श्री  गिर्राज  जी  की  सप्तकोसीय  परिक्रमा  का  पूर्ण  फल  प्राप्त  होता  है।  मन्दिर  में  श्रीराधावृन्दावन  चन्द्र,  श्रीराधादामोदरजी,  श्रीराधामाधव  जी  और  श्रीराधा छैल छिकन  जी के  विग्रह  है।  भगवान  श्रीकृष्ण  द्वारा  सनातन गोस्वामी को  प्रदत्त  शिला  भी  यहाँ  है,  जिस  पर  भगवान  का  दायाँ  चरण  चिन्ह,  बांसुरी,  लकुटी  और  गाय  का  खुर  अंकित  है।  यहाँ  जीव  गोस्वामी  जी एवं  अन्य  की  समाधि  भी  है।


वृन्दावन  में  यमुना  के  तट  पर  एक  प्राचीन  कदम्ब  वृक्ष  है।  यहीं  पर  श्रीकृष्ण  ने  कात्यायनी  व्रत  पालन  हेतु  यमुना  में  स्नान  करती  हुईं  गोप-रमणियों  के  वस्त्र  हरण  किये  थे।  ये  ब्रज  कुमारियाँ प्रतिदिन  ब्रह्ममुहूर्त्त  में  श्री  यमुना  जी  में  स्नान  करतीं  और  तट  पर  बालू  से  कात्यायनी  (योगमाया)  की  मूर्ति  बनाकर  आराधना  करती  हुई  यह  मन्त्र  उच्चारण  करती  थीं -


कात्यायनि  महामाये  महायोगिन्यधीश्वरी ।
नन्दगोपसुतं  देवि  पतिं  मे  कुरु  ते  नम:

व्रत  के  अन्त  में  कृष्ण  ने  स्वयं  वहाँ  पधारकर  वस्त्र  हरण  के  बहाने  उनको  मनोभिलाषित  वर  प्रदान  किया-  अगली  शरद  पूर्णिमा  की  रात  में  तुम्हारी  मनोभिलाषा  पूर्ण  होगी ।  शेरगढ  के  पास  एक  और  चीरघाट  तथा  कदम्ब  वृक्ष  प्रसिद्ध  है।  कल्पभेद  के  अनुसार  दोनों  स्थान  चीरघाट  हो  सकते  हैं।  इसमें  कोई  सन्देह  की  बात  नहीं ।


कतरा-कतरा आँसू ( मुक्तक )









तड़प-तड़प  के  ज़िन्दगी  का  हर  पल  गुजरा  है
यादों  में  तेरी  मेरा  आज  और  कल  गुजरा  है
दिल  में  छुपाया  तुम्हे  आंखों  में  बसाया  तुम्हें   
कतरा-कतरा  आँसू  भले  मेरी  आँखों  से  गुजरा  है ।
                                                     
                                                       मनोज  यादव

मिली तन्हाइयाँ मुझको ( मुक्तक )






मिली  खामोशियाँ  मुझको  मिली  परछाइयाँ  मुझको
मिली  बैचेनियाँ  मुझको  मिली  रुसवाईयाँ  मुझको
जो  चाहा  था  नहीं  मुझको  मिला  है  वो  ही  जीवन  में
मिली  तन्हाइयाँ  मुझको  मिली  वीरानियाँ  मुझको  । 
                                                     
                                                   मनोज   यादव

सोमवार, 2 मई 2016

(मेरे दिल के एहसास)








(मेरे दिल के एहसास)


एक  लड़की

जब  वो  चलती  है  क्या  खुशबू  आती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

जब  वो  हंसती  है  फूलों  की  बरसात  हो  जाती  है
🌹 ❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁ 🌹

उसका  खयाल  जो  आता  है  मन  मचल  सा  जाता  है
🌹 ❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

उसकी   बातें  जो  कंही  होती  है  मुझे  शर्म  सी  आ  जाती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

उसका  एहसास   जब  भी  आता  है
रोता  हुआ   चेहरा  भी  हंस  पड़ता  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

मोसम  बदल  जाते  हैं  जब  वो  झूम   के  घर  से  निकलती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

भोली  भाली  नटखट  परी   वो  मुझे  देख  छुप  जाती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

नयन  उसके  मतवाले  नजर  उसकी  बड़ी  नशीली  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

उसकी  पायल  की  झनकार  जैसे  ही  कानों  में  पड़ती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

मन मे  कई  सितार  बजने  लगते  हैं
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

दिल  में  नई  उमंगे  डोल  पडती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

उसके  पैरों  की  आहट  जब  भी  महसूस   करता  हुं
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

चुप के  से  मेरे  पीछे  आकर  मुझे  वो  डराती   है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

हो  चाहे  कितना  भी  गम  मुझे
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾🌹

हर  पल  वही  दिलासा  दिलाती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

गर  कभी  उससे  रुठ  भी  जाऊँ  तो  भी
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

वही  आकर  मुझे  मानती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

हाँ  है  एक  लड़की  जो  मुझे  बहुत   याद  आती  है
🌹❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁✾✾❁❁🌹

इतना सताऊंगा के आहें भरोगी ( मुक्तक )


इतना  सताऊंगा  के  आहें   भरोगी
इतना  तडपाऊंगा  के  आहें   भरोगी
इंतज़ार  की  घड़ियां  पड़  जाएँगी  भारी
इतना  याद  आऊँगा  के  आहें  भरोगी। 

तनहा इस ज़िन्दगी का साथ ( मुक्तक )


तनहा  इस  ज़िन्दगी  का  साथ  कब  तलक
ये  मंज़िल  ये  दूरी  ये  मुक़ाम  कब  तलक
अपनों  से  बनकर  रह  गये  बेगाने  हम
अब  बेगानों  में  अपनों  की  तलाश  कब  तलक ।

शनिवार, 30 अप्रैल 2016

धड़कन में दिल की याद तुम्हारी है ( मुक्तक )


ढ़लती  हुई  शाम  में  आस  तुम्हारी  है
आंखों  को  हर  पल  प्यास  तुम्हारी  है
धड़कने  को  धड़कती  है  दिल  की  धड़कन
हर  धड़कन  में  दिल  की  याद  तुम्हारी  है।

प्रेम ही तो धन है (मुक्तक)



प्रेम  ही  तो  धन  है  प्रेम  ही  जीवन  है
प्रेम  के  ही  दिन  रात  गीत  गुनगुनाइए
प्रेम  ही  है  औषधी  प्रेम  ही  संजीवनी
प्रेम  को  ही  दिन  रात  हृदय  में  बसाइये।

वृँदावन बनवाइये (मुक्तक )



राधा  बन  आये  गोरी  यमुना  के  तट  पर
श्याम  बनकर  खुद  बंसी  बजाइये
प्रेम  रहे  चारों   ओर   प्रेम  बसे  चारों  ओर
घर  को  ही  मिल  वृँदावन  बनवाइये ।

घर को ही मिल वृँदावन बनवाइये ( कविता )








दिल  करता  है  तुम्हे  आँखों  में  बसा  लूँ  मैं
दिल  करता  है  तुम्हे  सांसों  में  बसा  लूँ  मैं
जुदा ना  होने  दूँ   कभी  अपने  से  तुमको  मैं
दिल  करता  है  तुम्हे  खुद  में  छुपा  लूँ  मैं

आँखों  ही  आँखों  में  जब  बात  बढ़  जाती  है
चैन  दिन  का  रात  नींद  उड़  जाती  है
रूह  को  सुकून  नहीं  दिल  को  करार  नहीं
कैसे  कह  दू   तेरे  इश्क़  का  बीमार  नहीं

इश्क़  के  रोग  की  तो  दवा  नहीं  मिलती
भूख  नहीं  लगती  प्यास  नहीं  लगती
वैध  जी  से  पूछा  मैंने  दवा  तो  बताइये
बोले  दिलबर  को  अपने  मिलने  बुलाइये


आँखों  को  आँखों  के  पास  होटों  को  होटों  के  पास
पहले  दिलबर  को  अपने  गले  से  लगाइये
गिले-शिकवे सब  भूल  के  दोनों  ही  अब
ज़िन्दगानी  को  मिल  प्यार  से  बिताइये

प्रेम  ही  तो  धन  है  प्रेम  ही  जीवन  है
प्रेम  के  ही  दिन  रात  गीत  गुनगुनाइए
प्रेम  ही  है  औषधी  प्रेम  ही  संजीवनी
प्रेम  को  ही  दिन  रात  हृदय  में  बसाइये

राधा  बन  आये  गोरी  यमुना  के  तट  पर
श्याम  बनकर  खुद  बंसी  बजाइये
प्रेम  रहे  चारों   ओर   प्रेम  बसे  चारों  ओर
घर  को  ही  मिल  वृँदावन  बनवाइये ।






शनिवार, 9 अप्रैल 2016

प्रेम ना होता अगर जग में

 
 
प्रेम  ना  होता  अगर  जग  में  शायद  भगवान  नहीं  होते,
राधा  ना  होती  जग  में  मीरा  के  श्याम  नहीं  होते,
ना  कोई  वंशी-वट  होता,  वृँदावन  धाम  नहीं  होते । 

                                             मनोज  यादव

हमको सपने सजाना जरुरी लगा

पढ़िए मेरी कविता हमको सपने सजाना जरुरी लगा, शायद आपकी पलकों पर भी कुछ सपने सज जाएँ,
आपको भी किसी अपने के लिए कोई सपना सजाना जरुरी लगे,
हृदय-तल की गहराइयों से निकली एक कविता

"हमको सपने सजाना जरुरी लगा"


सादर -
मनोज यादव 
 

http://www.pravakta.com/humko-sapne-sajana-jaroori-laga/




मंगलवार, 22 मार्च 2016

क्या कहना इन रंगों का

















क्या कहना इन रंगों का

क्या  कहना  इन  रंगों  का
भाग्य गज़ब  के  पाये  है
हम  जिन  गालों  से  दूर  रहे
ये  उनको  छूकर  आये  हैं, 

घोल-२  कर  रंग  प्रेम  का
खेलन  आये  मोहन  होली
सखियों  संग  घेरा  राधा  ने
मोहन  के  संग  चली  होली,
गुलाल  उड़ा  वृन्दावन  में
बरसाने  में  जमकर  रंग  बरसा
देख  श्याम  की  मोहनी  सूरत
गोपियों  का  मन  हर्षा,
कान्हा  संग  होली  खेलन  के
ग्वालों  ने  भाग्य  जो  पायें हैं
हम  जिन  गालों  से  दूर  रहे
ये  उनको  छूकर  आये  हैं,

फाल्गुन  की  इस  मस्ती  में
जमकर  रंग-गुलाल  उडाओं
प्रेम  मिला  कर  रंगों  में
बिछड़े  अपनों  को  गले  लगाओ
ऐसा  रंग  चढ़े  मन  पर
जो  चढ़कर  फिर  वो  उतरे  ना
अपना  जब  बन  जाये  कोई
फिर  मिलकर  हमसे  बिछड़े  ना,
मीठी-२   घुझियों  के  भी
स्वाद  गज़ब  के  छाएं  हैं
हम   जिन  गालों  से  दूर  रहे
ये  उनको  छूकर  आये  हैं।


सादर -
मनोज यादव