बुधवार, 18 मई 2016

तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के










गीत 
तुम  चली  आओ  चुनर   प्यार  की  ओढ़  के 

अपने  चपल  नयनों  में  गोरी,
कर  काजर  का  यूं  श्रृंगार,
अधरों  पर  यूं   मुस्कान  बिखेर,
के  ज्यों  लागे  मोतियन  के  हार,
और  गुलाबी  चेहरे  पर,  मतवाली  लट  बिखेर  के,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.…… 

तेरी  जुल्फों  के  साए  में  जिन्दगी  सुहानी  लगती  है,
पीपर  की  छाया  भी  हमको  स्वर्ग  सरीखी  जंचती  है,
कोयल  की  हर  कूक  मेरे  मन  को  घायल  कर  जाती है,
तितली  मन  की  बगिया  में  रंग  नए  भर  जाती  है,
और  पवन  बसंती  का  हर  झोंका  जैसे  जाता  है  कोई  तरंग  छेड़  के,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.……

सजनी  खंजन  से  ये  नैन  तेरे  मेरे  हृदय  को  भेदित  करते  है,
कानों  के  झुमके  तेरे  गालों  से  ठिठोली  करते  हैं,
तेरे  चेहरे  की  गरिमा  से  मेरा  तन-मन  पिघला  जाता  है,
तेरे  नूपुरों  का  स्वर  जैसे  कोई  मधुर  गीत  सा  गाता  है,
तेरी  वाणी  का  हर  एक  बोल  जैसे  जाता  है,  कानों  में  मिसरी  घोल  के ,
तुम  चली  आओ  चुनर  प्यार  की  ओढ़  के.……

तेरे  साथ  ही  मैं  अपना  संसार  बसना चाहता हूँ ,
जीवन  का  हर  एक  गीत मै तेरे संग गाना चाहता हूँ ,
वीरानी लगती हैं तुम बिन मेरे मन की सारी गलियाँ ,
मेरे दिल के बागीचे  की सारी कुंजन सारी कलियाँ ,
साज़ रहित मेरे जीवन में, तुम चली आओ नयी प्रेम धुन छेड़  के ,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……








 
 

गुरुवार, 12 मई 2016

रोम-रोम मेरा वृन्दावन हो गया









थोड़ी    खुशियाँ   तुम   चुन  लेना
थोड़ी    खुशियाँ   हम   चुन   लेंगे
थोड़ा  सपने  तुम   बुन  लेना
थोड़े  सपने  हम   बुन   लेंगे

साथ  रहेंगे  खुशी  से  दोनों  हम
घर  को  मिल  वृन्दावन  कर  लेंगे।



बांसुरी  के  स्वरों  सा  मन  हो  गया
मोर  पंख  सा  तन  हो  गया
हे !  कृष्णा  जब  से  आये  हो  जीवन  में
रोम-रोम  मेरा  वृन्दावन  हो  गया।

मंगलवार, 10 मई 2016

कान्हा कितने प्यारे








छोड़  के  पानी  राधा  रानी 

 कान्हा   को    निहारे 

सोच  रही  यह  बैठी   बैठी 

कान्हा  कितने  प्यारे

ये अल्फ़ाज तेरे होते











काश  तुम  मेरे  होते
सांसे  भी  थम  जाती
अगर
ये  अल्फ़ाज  तेरे  होते


सांसों  को   आस   तुम्हारी  है
आँखों  को  प्यास  तुम्हारी  है
बेचैन  मुझे  कर  जाती  है  आकर  तनहाई  में
हर  धड़कन  में  बसने   वाली  वो  आवाज़  तुम्हारी  है ।

रविवार, 8 मई 2016

ना जाने लोग प्यार करते क्यों हैं ( कविता )





कितनी  दर्द  भरी  हैं
मोहोब्बत  की  राहें
फिर  भी  ना  जाने  लोग
गुजरते  क्यों  हैं,


जब  प्यार  निभाना 
आता   ही   नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
प्यार  करते  क्यों  हैं,


दिल  तो  दिल  होता  है 
किसी  का  कोई  खिलौना  नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
दिल  तोड़ते  क्यों  हैं,


कस्में  खाते  हैं
सात  जन्मों  तक  साथ  निभाने  की
 फिर  भी  ना  जाने  लोग
साथ  छोड़ते  क्यों  हैं,

कोई  तो  जान  देता  है 
उनकी  एक  मुस्कराहट  पर 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उससे  मुँह  फेरते  क्यों  हैं,

दुनियां  है  पैसे  वालों  की  साहब 
ग़रीब  के  पास  तो  बस  जज़्बात  हैं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उसके  जज्बातों  से  खेलते  क्यों  हैं ।

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अज़ीब  कश्मकश  रही  दोस्तों
अपनी  अधूरी  कहानी  में,



"उनको  चाहिए  थी  महलों  की  रंगीनियाँ 
और  हमारे  पास  अपने  अरमाँ  ही  थे  सजाने  को 

उनकी  ज़िन्दगी  में  कमी  थी  रोशनी  की 
और  हमारे  पास  अपना  दिल  ही  था  जलाने  को "









शनिवार, 7 मई 2016

कालिया दमन घाट, वृन्दावन







कालिया  दमन  घाट, वृन्दावन 

कालीयदमनघाट-  इसका  नामान्तर  कालीयदह  है।  यह  वराहघाट  से  लगभग  आधे  मील  उत्तर  में  प्राचीन  यमुना  के  तट  पर  अवस्थित  है।  यहाँ  के  प्रसंग  के  सम्बन्ध  में  पहले  उल्लेख  किया  जा  चुका  है।  कालीय  को  दमन  कर  तट  भूमि  में  पहुँच  ने  पर  श्रीकृष्ण  को  ब्रजराज  नन्द  और  ब्रजेश्वरी  श्री  यशोदा  ने  अपने  आसुँओं  से  तर-बतरकर  दिया  तथा  उनके  सारे  अंगो  में  इस  प्रकार  देखने  लगे  कि  'मेरे  लाला  को  कहीं  कोई  चोट  तो  नहीं  पहुँची  है।'  महाराज  नन्द  ने  कृष्ण  की  मंगल  कामना  से  ब्राह्मणों  को  अनेकानेक  गायों  का  यहीं  पर  दान  किया  था।

चीर घाट, वृन्दावन









चीर घाट


चीर  घाट,   वृन्दावन

इस  मन्दिर  की  परिक्रमा  करने  से  श्री  गिर्राज  जी  की  सप्तकोसीय  परिक्रमा  का  पूर्ण  फल  प्राप्त  होता  है।  मन्दिर  में  श्रीराधावृन्दावन  चन्द्र,  श्रीराधादामोदरजी,  श्रीराधामाधव  जी  और  श्रीराधा छैल छिकन  जी के  विग्रह  है।  भगवान  श्रीकृष्ण  द्वारा  सनातन गोस्वामी को  प्रदत्त  शिला  भी  यहाँ  है,  जिस  पर  भगवान  का  दायाँ  चरण  चिन्ह,  बांसुरी,  लकुटी  और  गाय  का  खुर  अंकित  है।  यहाँ  जीव  गोस्वामी  जी एवं  अन्य  की  समाधि  भी  है।


वृन्दावन  में  यमुना  के  तट  पर  एक  प्राचीन  कदम्ब  वृक्ष  है।  यहीं  पर  श्रीकृष्ण  ने  कात्यायनी  व्रत  पालन  हेतु  यमुना  में  स्नान  करती  हुईं  गोप-रमणियों  के  वस्त्र  हरण  किये  थे।  ये  ब्रज  कुमारियाँ प्रतिदिन  ब्रह्ममुहूर्त्त  में  श्री  यमुना  जी  में  स्नान  करतीं  और  तट  पर  बालू  से  कात्यायनी  (योगमाया)  की  मूर्ति  बनाकर  आराधना  करती  हुई  यह  मन्त्र  उच्चारण  करती  थीं -


कात्यायनि  महामाये  महायोगिन्यधीश्वरी ।
नन्दगोपसुतं  देवि  पतिं  मे  कुरु  ते  नम:

व्रत  के  अन्त  में  कृष्ण  ने  स्वयं  वहाँ  पधारकर  वस्त्र  हरण  के  बहाने  उनको  मनोभिलाषित  वर  प्रदान  किया-  अगली  शरद  पूर्णिमा  की  रात  में  तुम्हारी  मनोभिलाषा  पूर्ण  होगी ।  शेरगढ  के  पास  एक  और  चीरघाट  तथा  कदम्ब  वृक्ष  प्रसिद्ध  है।  कल्पभेद  के  अनुसार  दोनों  स्थान  चीरघाट  हो  सकते  हैं।  इसमें  कोई  सन्देह  की  बात  नहीं ।


कतरा-कतरा आँसू ( मुक्तक )









तड़प-तड़प  के  ज़िन्दगी  का  हर  पल  गुजरा  है
यादों  में  तेरी  मेरा  आज  और  कल  गुजरा  है
दिल  में  छुपाया  तुम्हे  आंखों  में  बसाया  तुम्हें   
कतरा-कतरा  आँसू  भले  मेरी  आँखों  से  गुजरा  है ।
                                                     
                                                       मनोज  यादव

मिली तन्हाइयाँ मुझको ( मुक्तक )






मिली  खामोशियाँ  मुझको  मिली  परछाइयाँ  मुझको
मिली  बैचेनियाँ  मुझको  मिली  रुसवाईयाँ  मुझको
जो  चाहा  था  नहीं  मुझको  मिला  है  वो  ही  जीवन  में
मिली  तन्हाइयाँ  मुझको  मिली  वीरानियाँ  मुझको  । 
                                                     
                                                   मनोज   यादव

सोमवार, 2 मई 2016

(मेरे दिल के एहसास)








(मेरे दिल के एहसास)


एक  लड़की

जब  वो  चलती  है  क्या  खुशबू  आती  है
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जब  वो  हंसती  है  फूलों  की  बरसात  हो  जाती  है
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उसका  खयाल  जो  आता  है  मन  मचल  सा  जाता  है
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उसकी   बातें  जो  कंही  होती  है  मुझे  शर्म  सी  आ  जाती  है
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उसका  एहसास   जब  भी  आता  है
रोता  हुआ   चेहरा  भी  हंस  पड़ता  है
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मोसम  बदल  जाते  हैं  जब  वो  झूम   के  घर  से  निकलती  है
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भोली  भाली  नटखट  परी   वो  मुझे  देख  छुप  जाती  है
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नयन  उसके  मतवाले  नजर  उसकी  बड़ी  नशीली  है
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उसकी  पायल  की  झनकार  जैसे  ही  कानों  में  पड़ती  है
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मन मे  कई  सितार  बजने  लगते  हैं
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दिल  में  नई  उमंगे  डोल  पडती  है
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उसके  पैरों  की  आहट  जब  भी  महसूस   करता  हुं
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चुप के  से  मेरे  पीछे  आकर  मुझे  वो  डराती   है
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हो  चाहे  कितना  भी  गम  मुझे
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हर  पल  वही  दिलासा  दिलाती  है
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गर  कभी  उससे  रुठ  भी  जाऊँ  तो  भी
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वही  आकर  मुझे  मानती  है
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हाँ  है  एक  लड़की  जो  मुझे  बहुत   याद  आती  है
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इतना सताऊंगा के आहें भरोगी ( मुक्तक )


इतना  सताऊंगा  के  आहें   भरोगी
इतना  तडपाऊंगा  के  आहें   भरोगी
इंतज़ार  की  घड़ियां  पड़  जाएँगी  भारी
इतना  याद  आऊँगा  के  आहें  भरोगी। 

तनहा इस ज़िन्दगी का साथ ( मुक्तक )


तनहा  इस  ज़िन्दगी  का  साथ  कब  तलक
ये  मंज़िल  ये  दूरी  ये  मुक़ाम  कब  तलक
अपनों  से  बनकर  रह  गये  बेगाने  हम
अब  बेगानों  में  अपनों  की  तलाश  कब  तलक ।