शनिवार, 25 नवंबर 2017

कहाँ पर वो है तेरे सपनों की मंजिल ।।



कई  ख़्वाब  छूटे  कई  ख़्वाब  टूटे
अपने  थे  जो  भी  सभी  हमसे  रूठे
इन  आँखों  ने  देखा  है  फिर  कोई  सपना
दूर  तलक  है  ना  कोई  भी  अपना,

निकल  पड़ा  हूँ  मैं  फिर  बन  मुसाफिर
तुमको  ही  पाने  तुम्हारी  ही  खातिर
ये  अनजान  राहें  ये  अनजान  महफ़िल
बढ़  सी  गयी  जिंदगानी  की  मुश्किल,

बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की मंजिल,

आँसू  बहुत  हैं  इन  आँखों  से  बिखरे
हर  पल  ही  तुझको  ठुकराया  गया  है
ख्वाबों  का  कोई  एक  खंडर  सा  है  तू
हसरतों  को  जिनमें  दफनाया  गया  है,

फिर  भी  हैं  बाकि  कुछ  दिल  में  उम्मीदें
कुछ  सपनों  की  खातिर  ये  जागी  सी  नींदें
फिर  से  कुछ  ख्वाबों  की  आँखों  में  झिलमिल
फिर  वो  ही  बेचैनी  फिर  वो  ही  मुश्किल,

बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की  मंजिल,

घाव  तो  अब  तक  भरे  ही  नहीं  थे
हर  पल  ही  उनको  कुरेदा  गया  है
कभी  आंसुओं  से  कभी  सिसकियों  से
हर  पल  में  उनको  समेटा  गया  है,

मालूम  है  तुझको  ये  अंजाम -ए- उल्फत
फिर  भी  गुनाह  तू  ये  करने  लगा  है
होती  नहीं  है  ज़मीन  भी  मयस्सर
वफ़ा  चाँद  से  फिर  भी  करने  लगा  है,

आना  ही  पडेग़ा  ख्वाबों  से  उतरकर
होगा  अगर  इन  लकीरों  में  शामिल,

 बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की  मंजिल ।।



सोमवार, 20 नवंबर 2017

जब तुम गुजरते हो ख्यालों से अच्छा लगता है......







हर  ख्वाब  इन  आखों  का  सच्चा  लगता  है,
जब  तुम  गुजरते  हो  ख्यालों  से  अच्छा  लगता  है,

जहन  में  जब  उतर  जाती  है  सूरत  तुम्हारी,
झुककर  चाँद  भी  जमीं  पर  ढलने  लगता  है,

आँख  जब  खुलती  हैं  सर्द  इस  मौसम  में  तुम्हारी,
क़तरा  शबनम  का  तुम्हारे  होठों  से  पिघलने  लगता  है,

जिंदगी  जीना  तो  बड़ा  दुश्वार  हो  गया  है  अब   "मनु"
तड़पकर  उनकी  यादों  में  जलना  अच्छा  लगता  है । 

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

मीठा सा कोई ख्वाब हो तुम !!!







इस  दिल  की  हर  एक  धड़कन  में
बसने  वाला  एहसास  हो  तुम
इन  आँखों  में  सजने  वाला  एक
मीठा  सा  कोई  ख्वाब  हो  तुम,

कितनी  बातें  मेरे  दिल  में
घुट-घुट  कर  ही  रह  जाती  हैं
तेरी  यादें  जब जब  आती  हैं
मेरे  दिल  को  तड़पाती  हैं

मेरे  मन  की  सूखी  धरती  पर
रिमझिम  गिरती  बरसात  हो  तुम
इन  आँखों  में  सजने  वाला  एक
मीठा  सा  कोई  ख्वाब  हो  तुम,

मैं  अक्सर  खोना  चाहता  हूँ
मीठी  सी  तेरी  बातों  में
और  पाना  खुद  को  चाहता  हूँ
प्यारी  सी  तेरी  आँखों  में

मैं  क्या  जानू  इस  दुनिया  को
मेरे  दिल  के  जब  पास  हो  तुम
इस  दिल  की  हर  एक  धड़कन  में
बसने  वाला  एहसास  हो  तुम।

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

दो आँखें हमने देखीं हैं !!!







राधा  तेरी  आँखों  सी  प्यारी
दो  आँखें  हमने  देखीं  हैं,
कारी-कजरारी,  मतवारी  दो
पलकें  झुकती  देखीं  हैं,

मुस्काती  हैं,  शरमाती  हैं
पगले  दिल  को  भरमाती  हैं
बिन  बोले  ये  ख़ामोशी  से
जाने  क्या-क्या  कह  जाती  हैं,
इन  आँखों  में  ही  हमने  तो
आँखों  की  भाषा  देखी  है,

राधा  तेरी  आँखों  सी  प्यारी
दो  आँखें  हमने  देखीं  हैं,

इन  आँखों  में  है  प्यार  बसा
इन  आँखों  में  सच्चाई  है
हम  डूब  गए  इन  आँखों  में
इनमें  इतनी  गहरायी  है,
इन  आँखों  में  ही  डूब  के  तो
हमने  एक  दुनिया  देखी  है,

राधा  तेरी  आँखों  सी  प्यारी
दो  आँखें  हमने  देखीं  हैं,
कारी-कजरारी,  मतवारी  दो
पलकें  झुकती  देखीं  हैं।

बुधवार, 12 जुलाई 2017

अब तो आकर बस जाओ कल्पना मेरे दिल की धरती पर !!!






चंदा  के  जैसा  नूर  है  बसता   तेरे  चेहरे  पर
अब  तो  आकर  बस  जाओ  मेरे  दिल  की  धरती  पर

दिल  की  धरती  पर  कल्पना  दिल  की  धरती  पर
अब  तो  आकर  बस  जाओ  मेरे  दिल  की  धरती  पर

मिलने  तुम  आयी  मुझसे  पैगाम  वफ़ा  का  लेकर
आँचल  में  मेरी  खुशियों  की  सारी  सौगातें  लेकर
इस   दिल  में  अब  तक  सिहरन  है  तेरी  आँखों  को  छूकर
अब  तो  आकर  बस  जाओ  मेरे  दिल  की  धरती  पर

वो  होठों   पर  मुस्कान  तेरी   पलकों  का  झुक  जाना
बिन  बोले  तेरी  आँखों  का  वो  सब  कुछ  कह  जाना
एक  अजब  सा  दर्द  है  जैसे  चोट  लगी  भीतर
अब  तो  आकर  बस  जाओ  मेरे  दिल  की  धरती  पर

वो  गंगा  की  पावन  लहरों  सी  आँखों  में  सच्चाई
जिनमें  मैंने  देखी  है  ख़ुद  अपनी  परछाई
वो  तुम  जो  यूँ  दिल  ही  दिल  में  रह  जाती  शरमाकर
अब  तो  आकर  बस  जाओ  मेरे  दिल  की  धरती  पर








बुधवार, 31 मई 2017

प्यारी सी आँखें " कल्पना " !!!







प्यारी  सी  आँखें  " कल्पना "  हमको  सता  रही  हैं
चुप-चाप  धीरे-धीरे  मेरा  दिल  चुरा  रहीं  हैं,

ये  प्यारी  सी  आँखें  मेरे  दिल  में  बसती  हैं
बस  आँखों  की  भाषा  को  आँखें  कहती  हैं
दो  होठों  पर  हर  पल  ख़ामोशी  रहती  है
पर  राज-ऐ-दिल  को  तो  ये  आँखें  कहती  हैं

तुम  बोलो  न  बोलो  हाल  दिल  का  बता  रहीं  हैं
चुप-चाप  धीरे-धीरे  मेरा  दिल  चुरा  रहीं  हैं,

ये  प्यारी  सी  आँखें  हैं  सागर  से  गहरी
देखा  है  जबसे  मेरी  दुनिया  है  ठहरी
मैं  हूँ  पागल-दीवाना  बस  इतना  कहना  है
इन  प्यारी  आँखों  में  मेरी  सारी  दुनिया  है

तेरी  प्यारी  सी  आँखें  धड़कन  में  समा  रही  हैं
 चुप-चाप  धीरे-धीरे  मेरा  दिल  चुरा  रहीं  हैं।

मंगलवार, 30 मई 2017

बस एक " कल्पना " नाम लिखूँ !!!






बड़े  दिनों  से  दिल  में  है
जो  तुमको  वो  पैगाम  लिखूँ
अपने  होंठो  पर  बसने  वाली
ख़ामोशी  का  कोई  नाम  लिखूँ 
हाथ  हमारा  थाम  लो  " कल्पना "
दुनिया  मेरी  रोशन  कर  दो
चाँद-तारों  से  सजी  हुई  प्यारी  सी
शाम  तुम्हारे  नाम  लिखूँ ,


गीत  लिखूँ   मैं  प्यार  भरा
दिल  के  सारे  अरमान  भरा
कुछ  गीत  तुम्हारी  अलकों  पर
कुछ  गीत  तुम्हारी  पलकों  पर
कुछ  गीत  तुम्हारे  होठों  पर
कुछ  गीत  तुम्हारे  बोलो  पर
प्रेम  तार  की  वीणा  का
हर  एक  स्वर  मैं  तुम्हारे  नाम  लिखूँ ,

कोई  कल्पवृक्ष  का  फूल  हो  तुम
सारी  इच्छा  पूरी  करने  वाला
कोई  मीठा  सा  बोल  हो  गीतों  का
मन  में  आहें  भरने  वाला
रब  रहमत  मुझ  पर  इतनी  कर  दे
मन  में  इतनी  सी  इच्छा  है
" मनु "  इस  सारे  आकाश  पे  मैं
बस  एक  " कल्पना "  नाम  लिखूँ।
 

शनिवार, 27 मई 2017

" कल्पना " बख़ूबी जानता हूँ मैं !!!




" कल्पना "  बख़ूबी  जानता  हूँ  मैं  तुम  चाँद  हो  फ़लक  के
छू  लूँ  तुमको  ये  हक़  हमारा  तो  नहीं 

कितनी  तंमन्नाएँ  मचलती  हैं  इस  दिल  में  रात-दिन 
फिर  भी  कभी  आवाज़  देकर  तुमको  पुकारा  तो  नहीं 

बंदा  हूँ  मैं  भी   नेक  दिल  का  बात  मेरी  भी  सुन  लो 
हाल  भी  ना  पूछो  हमसे  हमारा   इतना  आवारा  तो  नहीं 

एक  अदना  सा  परिंदा  हूँ  मैं  धरती  पर  बसने  वाला 
चूम  लूँ  आसमाँ   को  ऐसा  कोई  ख़्वाब  हमारा  तो  नहीं । 

शुक्रवार, 26 मई 2017

"कल्पना" खूबसूरत कितने हो आप !!!!




"कल्पना"   खूबसूरत   कितने   हो   आप
ये   तो   आप   खुद   भी   नहीं   जानते

कितने  भोले  बनते  हो
जैसे  दीवाने  की  हालत  नहीं  जानते

ख्वाबों-ख्यालों  में  छाए  रहते  हो
जैसे  सपनों  की  हक़ीक़त  नहीं  जानते

कतरा-कतरा  ढल  जाता  है  पल  जिंदगी  का
जैसे  ढलते  वक़्त  की  नज़ाकत  नहीं  जानते । 

गुरुवार, 25 मई 2017

बुधवार, 24 मई 2017

कल्पना कभी नाराज़ मत होना मुझसे................






कल्पना  कभी  नाराज़  मत  होना  मुझसे................


मजबूरियाँ  दी  हैं  मेरी  ज़िन्दगी  ने  बहुत
कभी  मैं  अपना  हाथ  बढ़ाऊँ  भी  तो  कैसे

अपने  दिल  में  बसने  वाले  अरमानों  को
 कभी  किसी  के  संग  सजाऊँ  भी  तो  कैसे

" कल्पना "  तुम  तो  खूबसूरत  चाँद  हो  फलक  के
जिससे  होता  है  ये  सारा  जग  रोशन

हस्ती  ज़रा  छोटी  है  अपनी
तुम  को  जमीं  पर  लाऊँ  भी  तो  कैसे ............

तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.



ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही!
ओ  अमलताश  की  अमलकली
धरती  के  आतप  से  जलते
मन  पर  छाई  निर्मल  बदली.
मैं  तुमको  मधुसदगन्ध  युक्त  संसार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  मुझको  करना  माफ  तुम्हे  मैं  प्यार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  कल्पव्रक्ष  का  फूल  और
मैं  धरती  का  अदना  गायक
तुम  जीवन  के  उपभोग  योग्य
मैं  नहीं  स्वयं  अपने  लायक
तुम  नहीं  अधूरी  गजल  शुभे
तुम  शाम  गान  सी  पावन  हो
हिम  शिखरों  पर  सहसा  कौंधी
बिजुरी  सी  तुम  मनभावन  हो.
इसलिये  व्यर्थ  शब्दों  वाला  व्यापार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  मुझको  करना  माफ  तुम्हे  मैं  प्यार  नहीं  दे  पाऊँगा.


मंगलवार, 23 मई 2017

गलती मेरी कल्पना की है या मेरी कविताओं की !!!





बात  बस  हमारी  कविताओं  की  इतनी  सी  है,

अब  मैं  तुमको  कैसे  बताऊँ  की  मेरी  सारी  कविताएं  बस  तुम  से  हैं  और  बस  तुम्हारे  लिये  और  तुम  ही  मेरी  कल्पना  हो,

और  मेरी  कल्पना  तुम  हो  ही  इतनी  ख़ूबसूरत  है  की  मैं  कविताओं  में  नहीं  बस  अपनी  कल्पना  में  ही   खोया  रहता  हूँ,

और  तुम   खुद  एक  जीती-जागती  कविता  हो ,  भला  मैं  तुम   पर  क्या  कविता  लिख  पाउँगा,


तुम्हारी   मुस्कराहट  खुद  एक  कविता  है,  किसी  झरने  की  तरह  बहती,  मन  में  हलचल  मचाती,  तन  को  शीतल  करती,
तुम्हारी   मुस्कराहट  कविता  की  पंक्तियों  की  तरह  खूबसूरत,  सीधा  दिल  की  गहराईयों  में  उतर  जाने    वाली,
अपनी  सुध  नहीं  रहती  जब  तुम्हे   मुस्कुराता  देखते  हैं,

तुम्हारी  आँखें  खूबसूरत  ग़ज़ल  सी,  जिनमें  नज़ाकत  है,  हया  है,  फ़िज़ा  है,  नशा  है,
मदहोश  कर  देने  वाली  तुम्हारी   वो  नजरें,
 ना  किसी  साक़ी  की  ज़रूरत  है  ना  मैख़ाने  की
ना  जाम  की  ना  पैमाने  की ............

जब  भी  देखती  है  हमारी  तरफ  मदहोशी  सी  अपने  आप  छाने  लग  जाती  है,  एक   अज़ब  सा  नशा  सारे बदन  में  उतरने  लगता  है,
सुरूर  सा  छा  जाता  है,  दिल  झूमने  लगता  है  और  मन  का  गीत  हमारा  ग़ज़ल  गाने  लगता  है,

होंठ  तुम्हारे  किसी  खूबसूरत  शायरी  की  तरह  दो  शब्द  भी  बोल  दें  तो  हमें  मतलब  समझने  में  भी बरसों  लग  जायें,
बोलते  हैं  तो  फिर  भी  ठीक  हैं  पर  कभी-कभी  बिना  बोले  भी  बहुत  कुछ  बोल  जाते  हैं  तो  उसको समझने  में  बड़ी  तकलीफ  होती  है।

बेहद  खूबसूरत  दो  लफ़्ज़ों  की  शायरी  और  उससे  भी  कहीं  ज्यादा  खूबसूरत  उनके  दो  प्यारे  से  सुर्ख गुलाबी  होंठ !!!

जितना  कुछ  भी  मैंने  अभी  लिखा  ये  सब  तो  कुछ  भी  नहीं,  तुम्हारा   इतराना,  तुम्हारा  बलखाना, तुम्हारा  हसना,   तुम्हारा   बोलना,  तुम्हारा  देखना,  तुम्हारा  मुस्कुराना,

तुम्हारी   हर  एक  अदा  पर  हर  एक  शोख़ी  पर  ना  जाने  कितनी  कविताएं,  ना  जाने  कितनी  ग़ज़ल  मैं लिख  भी  दूँ ,  तब  भी  मुझे  हमेशा  यही  लगता  है  और  लगता  रहेगा   की  तुम्हारी   खूबसूरती  बहुत  ज्यादा  है  और  मेरे  पास  उसे  बयां  करने  के  लिए  शब्द  बहुत  कम।

ख़ामोशी  को  जुबाँ  देने  के  लिए  हमारे  पास  बस  हमारी  कलम  ही तो  है जब  जब  उनको  देखता  हूँ  हर बार  ऐसा  लगता  है  जैसे  मैं  उन्हें  पहली  बार  देख  रहा  हूँ,

पता  नहीं  यहाँ  पर  गलती  मेरी  कल्पना  की  है  या  मेरी  कविताओं  की .....................



शनिवार, 20 मई 2017

आँखों से हमारी गायब है नींदें !!!



आँखों  से  हमारी  गायब  है  नींदें
हर  ख्वाब  हमको  सुनहरा  नज़र  आता  है


पलकें  हमारी  झपके  भी  तो  कैसे
हर  वक़्त  सामने  उनका  चेहरा  नज़र  आता  है

बेबसी  और  बैचेनी  तड़पाती  है  दिल  को
चुप-चुप  अश्कों  को  पीना  नज़र  आता  है

छलनी-छलनी  हो  गया  पागल  दिल  हमारा
अब  तो  मुश्किल  जख्मों  को  पीना  नज़र  आता  है

वो  जान  कर  भी  अनजान  बने  बैठे  हैं
हमको  भी  अजनबी  बन  जीना  नजर  आता  है।

शुक्रवार, 19 मई 2017

"कल्पना" हो अगर !!!








ये  कहानी  अधूरी  तो  ना  छोड़ो  तुम
हमसे  ऐसे  नज़र  को  तो  ना  मोड़ो  तुम
दिल  तो  दिल  हमारा  पत्थर  तो  नहीं
ऐसे  शीशा  समझ  के  तो  ना  तोड़ो  तुम,

खुशी  मिल  गयी  जब  से  तुम  हो  मिले
रंगीन  है  समा  जबसे  तुम  हो  मिले
है  छायी  ख़ुमारी  हर  एक  शाम  पर
एक  नशा  छा  गया  जबसे  तुम  हो  मिले

नदिया  हो  अगर  मैं  कोई  प्यास  हूँ
मुझको  महसूस  कर  मैं  तेरे  प्यास  हूँ
गीत  हो  या  ग़ज़ल  या  हो  कविता  कोई
"कल्पना"  हो  अगर  मैं  कोई  ख़्वाब  हूँ।

गुरुवार, 18 मई 2017

कुछ ख़ास - आपके लिए !!!



आँख  जब  उनसे  मिली  अपना  होश-ओ-हवास  खो  दिया
नींद  खोयी  रातों  की  दिन  का  चैन  खो  दिया
अब  तो  कुछ  बचा  नहीं  मेरे  पास  खोने  को
पहले  तो  दिल  खोया  आज  अपने  आप  को  भी  खो  दिया।

जरुरी  है  की  आँखों  में  मिलने  की  प्यास  बाकि  रहे
ताकि  ज़िंदगी  में  ज़िंदा  होने  का  एहसास  बाकि  रहे
फैसले  सारे  तेरे  हसकर  कबूल  है  ऐ  ज़िंदगी
बस  दिल  में  किसी  के  लिए  प्यार  और  धड़कन  में  इंतज़ार  बाकि  रहे।

मत  छेड़ा  करो  पुराने  तारों  को  हमारे
सीने  का  दर्द  आँखों  में  गलने  लगता  है
लाख  बहारें  छायी  हो  भरे  गुलशन  में  लेकिन
पतझर  आते  ही  मौसम  बदलने  लगता  है।

जो  खुद    है  फूल   कुमुदनी  का  उसे  मैं  कमल  क्या  लिखूँ
जो  खुद  है  जीती-जागती  ग़ज़ल  उसे  मैं  ग़ज़ल  क्या  लिखूँ।

मंगलवार, 16 मई 2017

उनकी एक झलक को !!!!







" मनु "  वो  खूबसूरत  बसंती  हवा  सी
अपने  आँचल  में  सारे  गुलशन  को  समेटे  हुए
पीली-पीली  सरसों  की  तरह  लहराती-बलखाती
जब  भी  गुजरती  है  हमारे  आस-पास  से  अक्सर
ऐसा  लगता  है  जैसे  मौसम  बसंत  का  भी 
शर्मा  जाता  होगा
जब  देखता  होगा  उनकी  एक  झलक  को,


" मनु "  वो  मादकता  आंखों  से  छलकाती
हुस्न  की  शोखियों  पर  साकी  जैसे  बलखाती
वो  सरस-सजल  पलकों  वाली,  वो  कुंचित  घन  अलकों  वाली
जब  भी  गुजरती  है  हमारे  आस-पास  से  अक्सर
ऐसा  लगता  है  जैसे  पैमानें  और  मैख़ाने  भी
शर्मा  जाते  होंगे
जब  देखते  होंगे  उनकी  एक  झलक  को,


" मनु "  वो  लहराता  ख़ूबसूरती  का  साग़र
एक  मुस्कराहट  उनकी  दूर  तक  हल-चल  मचाती
भीगे-भीगे  अधर  उनके  गुलाब  की  पंखुड़ी  की  तरह  सरस
 जब  भी  गुजरती  है  हमारे  आस-पास  से  अक्सर
ऐसा  लगता  है  जैसे  क़लम  हमारी
दीवानी  हो  जाती  है
जब  देखती  है उनकी  एक  झलक  को ।


शनिवार, 13 मई 2017

" हर कविता मेरी बस तुम्हारे लिए "








कुछ  खास  है  कुछ  खोये  एहसास
कुछ  यादों  के  हैं  धोये  एहसास
एहसासों  को  पल-पल  संजोते  हुए
सजाकर  लाया  हूँ  तुम्हारे  लिए
ये  कविता  मेरी  है  तुम्हारे  लिए,

कुछ  हकीकत  हैं,  अफ़साने  हैं
कुछ  नग्में  हैं  कुछ  तराने  हैं
कल्पनाओं  को  पल  में  समेटे  हुए
सजाकर  लाया  हूँ  तुम्हारे  लिए
ये  कविता  मेरी  है  तुम्हारे  लिए,

कुछ  बातें  कही  हैं  कुछ  अनकही
कुछ  रस्में  नयी  कुछ  कस्में  नयी
तन्हाई  को  खुद  में  समेटे  हुए
सजाकर  लाया  हूँ  तुम्हारे  लिए
ये  कविता  मेरी  है  तुम्हारे  लिए,

कुछ  दर्द  सहे  कुछ  पीड़ा  सही
बेचैनी  सही  लाचारी  सही
अश्कों  से  दामन  भिगोए  हुए
सजाकर  लाया  हूँ  तुम्हारे  लिए
ये  कविता  मेरी  है  तुम्हारे  लिए,

मिलो  तुम  हमें  पलकों  के  तले
समय  से  इधर  या  समय  से  परे
कुछ  सपने  आँखों  में  संजोये  हुए
 सजाकर  लाया  हूँ  तुम्हारे  लिए
ये  कविता  मेरी  है  तुम्हारे  लिए।


'' तुम्हारे  लिए  बस  तुम्हारे  लिए
हर  कविता  मेरी  बस  तुम्हारे  लिए "


" आँखें  तो  कह  देती  हैं  बस  होटों  से  दूरी  है,
कुछ  कहना  चाहता  हूँ  तुमसे  पर  जाने  क्या  मज़बूरी  है "






गुरुवार, 4 मई 2017

वफ़ा ना कर बैठे !!!




ख़्वाब - ओ - हकीकत  में  फासला  ना  कर  बैठे
पलकें  हमारी  झपक  कर  ये  गुनाह  ना  कर  बैठें
हम  तो  समझाते  रहते  हैं  अपने  दिल  को  बहुत
उनकी  नजरों  से  उलझ  कर  वफ़ा  ना  कर  बैठे।

सोमवार, 1 मई 2017

रहते हैं जाने कहाँ पर वो - ग़ज़ल








रहते  हैं  जाने  कहाँ  पर  वो  आज  कल
एक  हम  ही  हैं  जिसको  ख़बर   नहीं  मिलती

तड़प-२  कर  कट  रहा  लम्हा  इंतज़ार  का
इंतज़ार  के  इस  लम्हे  को  उम्र  नहीं  मिलती

सामने  जब  आते  हैं   हमारे  वो  कभी-कभी
आँखें  उठती  है  पर  नज़रों  से  नज़र  नहीं  मिलती

मोहोबत  का  नूर  है  उनके  चेहरे   पर  भी
ख्वाबों  को  बस  इतनी  हक़ीक़त  नहीं  मिलती ।।



शनिवार, 29 अप्रैल 2017

कहीं तो अधूरी जिंदगानी रह जाएगी !!!


प्यार  के  बिना  भी
उम्र  काट  लेंगे  आप  किन्तु
कहीं  तो  अधूरी  जिंदगानी  रह  जाएगी,

यानि  रह  जाएगी  ना  मन  में  तरंग
नाही  देह  पर  नेह  की  निशानी  रह  जाएगी,

रह  जाएगी  तो  बस  नाम  की
नहीं  तो  फिर  किस  काम
ये  जवानी  रह  जाएगी,

रंग  जो  ढंग  से
उमंग  के  चढ़ेंगे  तो,

कबीर  सी  चदरिया  पुरानी   रह  जाएगी।


कवि वर - स्वर्गीय श्री देवल आशीष

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

दिल की बातें समझती नहीं हो !!!









कितनी  मासूम  हो  तुम  हो  जानम
दिल  की  बातें  समझती  नहीं  हो
मैं  तो  हूँ  तेरे  प्यार  में  पागल
तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो,


जबसे  तुम  हो  मुझे  मिल  गयी
सूने  मन  में  कली  खिल  गयी
मैं  सागर  था  बरसों  से  तन्हा
उसको  नदिया  सी  तुम  मिल  गयी,

अब  होने  दो  प्रेम  का  संगम
देर  जाने  क्यों  अब  कर  रही  हो

तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो,

रात  की  चांदनी  के  तले
आस  का  एक  दीपक  जले
आँख  के  मोतियों  सा  छलक  कर
पलकों  पर  एक  सपना  पले,

देखो  बेचैन  मैं  हो  रहा  हूँ
तुम  भी  करवट  बदल  तो  रही  हो
तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो।




रविवार, 23 अप्रैल 2017

प्यार की नयी शुरुआत !!!






अनजाने  से  हम  भी  अनजाने  से  तुम  भी
अनजाने  हैं  मंजिल  अनजानी  डगर  भी,
चलो  मिलकर  सफर  में  साथ-साथ  चलते  हैं
प्यार  की  हम  नयी  एक  शुरुआत  करते  हैं।






गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

उनकी सांसों की खुश्बू !!!




दिल  के  अरमानों  ने  मेरे
फिर  से  ली  अंगड़ाई  है,
उनकी  सांसों  की  खुश्बू  लेकर
लौटी  फिर  पुरवाई  है,

एहसास  नए  से  जागे  हैं
जब-जब  उनको  महसूस  किया,
 मदहोशी  में  अक्सर  मैं
उनकी  यादों  में  झूम  लिया,

अब  सुबह  नई  और  शाम  नई
मेरे  जीवन  में  आयी  हैं,
दिल  के  अरमानों  ने  मेरे
फिर  से  ली  अंगड़ाई  है,

उलझ  रहा  था  जीवन  की
प्यासी - पथरीली  राहों  पर,
व्यर्थ  विषय  की  बातों  पर
और  अपनों  के  आघातों  पर,


अब  भटके  एक  पथिक  ने  जैसे
फिर  से  मंजिल  पायी  है,
दिल  के  अरमानों  ने  मेरे
फिर  से  ली  अंगड़ाई  है,


उनकी  सांसों  की  खुश्बू  लेकर
लौटी  फिर  पुरवाई  है ।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

---- एक ग़ज़ल --- तुम्हारे लिये -----



लौट  तुम  जिन्दगानी  में  आती  नहीं
खुशबू  मगर  तेरी  यादों  की  जाती  नहीं,

मौसम  बदले  हैं  यूं  ही  बदलते  रहेंगे
रोज़  ऋतुएँ  मिलन  की  आती  नहीं,

जख़्म  हँसकर  सहा  और  सहते  रहेंगे
दीवानगी  अपने  सीने  की  जाती  नही,

तमन्ना  है  यही  मिल  जाओ  तुम  हमें
उदासी  दिल  की  सही  हमसे  जाती  नही,

घुट-घुट  कर  जिया  गम-ऐ-पल  ज़िन्दगी
मौत  भी  बेवफा  हमको  आती  नहीं,

नज़्म  भी  हो  तुम्ही  गीत  भी  हो  तुम्ही
अपनी  आदत  गुनगुनाने  की  जाती  नहीं।



---- एक  ग़ज़ल  ---  तुम्हारे  लिये -----





शनिवार, 14 जनवरी 2017

आज हम वृन्दावन जा रहे हैं, जय हो बांके बिहारी की !!!!!!









नव-वर्ष  का  आगमन  हो  चुका  है,  सूरज  की  पहली  किरण  के  साथ  जैसे  नयी  उम्मीदें  हर  दिन  जागती हैं,  वैसे  ही  नए  वर्ष   के  आगमन  के  साथ  सभी  व्यक्तिगत  रूप  से  कुछ  उद्देश्य  जरूर  निर्धारित  करते हैं,  चाहे  वो  पूरे  हो  पाये  या  नही,  किन्तु  उद्देश्य  निश्चित  करना  तो  कथित  तौर  पर  जरुरी  है।
जो  भी  वक़्त  गुजरता  है  कुछ  सीख  तो  अवश्य  ही  देकर  जाता  है,  कुछ  लम्हें  खुशी  से  बीते  तो  कुछ दुःख  के  साथ  पर  यही  तो  जीवन  है,  इसका  मतलब  ये  है  की  हम  जीवन  को  जी  रहे  हैं।


जीवन  एक  सतत  और  गतिशील  प्रक्रिया  का  नाम  है  जो  हमेशा  चलती  रहती  है,  वक़्त  का  यह  पंछी यादों  के  कारवां  को  अपने  में  समेटे  हुए  उड़ता  चला  जा  रहा  है  जिसे  शायद  किसी  की  परवाह  नहीं, जो इसकी  उड़ान   के  साथ  उड़ा  समय  उसी  का  और  जो  नहीं  उड़  पाया  वो  शायद  दूर  से  हाथ  हिलाने  के सिवा  कुछ  भी  नही  कर  सकता।


शायद  मैं  खुद  अपने  ही  बारे  में  ये  निश्चय  ना  कर  पाऊँ  की  मैं  कितना  सफल  हुआ  हूं  वक़्त  की  इस उड़ान  के  साथ  पर  मुझे  खुशी  है  और  गर्व  है  इस  बात  पर  ये  बीता  वर्ष  समतल  रूप  से  बहती  हुई  एक  नदिया  के  समान  नहीं  रहा  बल्कि  इसने एक  समुंद्र  का  रूप  लिया  जिसमे  समय-२  पर  गतिशील लहरें  जीवन-रूपी  शिलाओं  से  टकराती  रही,  थपेड़े  लगते  रहे  ठीक  है  आँधियाँ  और  तूफान  भी  जरुरी होते हैं  तभी  तो  किनारे  मिलते  है  और  किनारे  पर  पहुचने  की  चाह  भी  तभी  जीवंत  रहेगी।


समस्याएं  सभी  के  जीवन  का  हिस्सा  हैं, कुछ  अपने  आप  हल  हो  जाती  है  कुछ  को  हम  अपनी योग्यता  से  हल  कर  लेते  हैं  और  कुछ  समस्याओं  का  हल  केवल  समय  ही  कर  सकता  है  और  सब कुछ  उसी  समय  पर  छोड़  भी  देना  जरुरी  है।

कुछ  अन-सुलझे  प्रश्नों  के  साथ  मेरा  वर्ष  भी  समाप्त  हुआ,  मन  में  कुछ  अच्छे  लम्हों  की  यादें  कुछ छिन्न-भिन्न  हुई  भावनाएँ  और  कुछ  अन-सुलझे  से  प्रश्न  जिनका  जवाब  मैं  नहीं  केवल  बिहारी  जी  ही दे  सकते  हैं  और  उनका  हल  भी।


तो  दोस्तों  जा  रहा  हूँ  उन्ही  के  दरबार  में  हाजरी  लगाने  उन्ही  अन-सुलझे  प्रश्नों  के  साथ  अब  उन्ही  को  सौंप  कर  आऊंगा  सारे  सवाल  और  सारी  समस्याएं।
जय  हो  बांके  बिहारी  की !!!!!!
राधे  राधे  मेरे  सभी  मित्रों  को  और  सभी  को  नव  वर्ष  की  और  मकर-संक्रांति   बधाईयाँ !!!!!!



सादर -
मनोज यादव


गुरुवार, 12 जनवरी 2017

तुम तो थी एक कल्पना बस !!!!!!!!!







जिसके लिए सपना बुना था   

सीप  से  मोती  चुना  था
भीगी  पलकों  ने  कहा 
वो  प्यार  मेरा तुम  नहीं  हो 

जिसके  लिये  मैं  था  दीवाना 
सारी  दुनिया  से  बेगाना 
वो  तो  थी  एक  कल्पना  बस 
वो  हक़ीक़त  तुम  नहीं  हो। 

सोमवार, 9 जनवरी 2017

एहसास भला किसको होगा






तपती  धूप  में  चलते-चलते  पड़े  पैर  में  छालों  का
तन्हाई  में  पल-पल  पीते  उन  आँसू  के  हालों का
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास  भला  किसको  होगा,

सूनेपन  को  हरने  वाले  उस  आने  वाले  कलरव  का
किसी  सूखे  पेड़  से  फूट  पड़े  सहसा  एक  पल्लव  का
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास भला  किसको  होगा,

कोई  झरना  सा  फूट  पड़ेगा  सूनी  गोद  भरेगी  धरती  की
पर  क्या  कोई  व्यथा  सुनेगा  अपना  जल  बरसाते  मेघों  की
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास  भला  किसको  होगा,

उस  पीड़ा  का  उस  आंसू  का  सूनेपन  का  तन्हाई  का
पग-पग  पर  मिलने  वाली  अपनों  से  रुसवाई  का
एहसास  भला  किसको  होगा, एहसास  भला  किसको  होगा ।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

क्या कीमत है उस आंसू की जो भीतर-२ मरता है।





हर  दिन  आँखों  में  एक  सपना  बनता  और  बिखरता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

झूठी  रसमें,  झूठी  कसमें,  रिश्ते  वो  सारे  झूठे  थे,
इकरार  तुम्हारा  झूठा  था, वो  प्यार  तुम्हारा  झूठा  था,
प्यार किया  तुमसे  मैंने  और  तुमने  खिलवाड़  किया,
मैं  ही  एक  पागल  था  जो  मैंने  सब  कुछ  तुम  पर  वार  दिया,
फिर  भी  दिल  के  टुकड़ों  में  तेरा  ही  रूप  उभरता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

क्या  माँगा  था  तुमसे  ज्यादा , बस  साथ  तुम्हारा  माँगा  था,
प्यार  तुम्ही  से  करता  था  और  प्यार  तुम्हारा  माँगा  था,
वो  लोग  भला  कैसे  थे  जिनको  प्यार  के  बदले प्यार  मिला,
हमको  दुःख  की  जागीर  मिली  और  पीड़ा  का  अधिकार  मिला,
कैसे  रोकूँ  उस  भाव  को  मैं  जो  घाव  हृदय  में  करता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

कहना  बहुत  था  तुमसे,  पर  सुना  नहीं  तुमने,
भूल  क्या  हुई  मुझसे  जो  ये  सिला  दिया  तुमने,
अब  सूनी  हैं  राहें  मेरी,  सूनी  ये  धडकन  है,
तन्हा  है  दर्पण  मेरा  और  तन्हा  जीवन  है,
सोचा   बिसारूँ   तुमको   पर   याद   तुम्ही को  करता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।