शनिवार, 14 जनवरी 2017

आज हम वृन्दावन जा रहे हैं, जय हो बांके बिहारी की !!!!!!









नव-वर्ष  का  आगमन  हो  चुका  है,  सूरज  की  पहली  किरण  के  साथ  जैसे  नयी  उम्मीदें  हर  दिन  जागती हैं,  वैसे  ही  नए  वर्ष   के  आगमन  के  साथ  सभी  व्यक्तिगत  रूप  से  कुछ  उद्देश्य  जरूर  निर्धारित  करते हैं,  चाहे  वो  पूरे  हो  पाये  या  नही,  किन्तु  उद्देश्य  निश्चित  करना  तो  कथित  तौर  पर  जरुरी  है।
जो  भी  वक़्त  गुजरता  है  कुछ  सीख  तो  अवश्य  ही  देकर  जाता  है,  कुछ  लम्हें  खुशी  से  बीते  तो  कुछ दुःख  के  साथ  पर  यही  तो  जीवन  है,  इसका  मतलब  ये  है  की  हम  जीवन  को  जी  रहे  हैं।


जीवन  एक  सतत  और  गतिशील  प्रक्रिया  का  नाम  है  जो  हमेशा  चलती  रहती  है,  वक़्त  का  यह  पंछी यादों  के  कारवां  को  अपने  में  समेटे  हुए  उड़ता  चला  जा  रहा  है  जिसे  शायद  किसी  की  परवाह  नहीं, जो इसकी  उड़ान   के  साथ  उड़ा  समय  उसी  का  और  जो  नहीं  उड़  पाया  वो  शायद  दूर  से  हाथ  हिलाने  के सिवा  कुछ  भी  नही  कर  सकता।


शायद  मैं  खुद  अपने  ही  बारे  में  ये  निश्चय  ना  कर  पाऊँ  की  मैं  कितना  सफल  हुआ  हूं  वक़्त  की  इस उड़ान  के  साथ  पर  मुझे  खुशी  है  और  गर्व  है  इस  बात  पर  ये  बीता  वर्ष  समतल  रूप  से  बहती  हुई  एक  नदिया  के  समान  नहीं  रहा  बल्कि  इसने एक  समुंद्र  का  रूप  लिया  जिसमे  समय-२  पर  गतिशील लहरें  जीवन-रूपी  शिलाओं  से  टकराती  रही,  थपेड़े  लगते  रहे  ठीक  है  आँधियाँ  और  तूफान  भी  जरुरी होते हैं  तभी  तो  किनारे  मिलते  है  और  किनारे  पर  पहुचने  की  चाह  भी  तभी  जीवंत  रहेगी।


समस्याएं  सभी  के  जीवन  का  हिस्सा  हैं, कुछ  अपने  आप  हल  हो  जाती  है  कुछ  को  हम  अपनी योग्यता  से  हल  कर  लेते  हैं  और  कुछ  समस्याओं  का  हल  केवल  समय  ही  कर  सकता  है  और  सब कुछ  उसी  समय  पर  छोड़  भी  देना  जरुरी  है।

कुछ  अन-सुलझे  प्रश्नों  के  साथ  मेरा  वर्ष  भी  समाप्त  हुआ,  मन  में  कुछ  अच्छे  लम्हों  की  यादें  कुछ छिन्न-भिन्न  हुई  भावनाएँ  और  कुछ  अन-सुलझे  से  प्रश्न  जिनका  जवाब  मैं  नहीं  केवल  बिहारी  जी  ही दे  सकते  हैं  और  उनका  हल  भी।


तो  दोस्तों  जा  रहा  हूँ  उन्ही  के  दरबार  में  हाजरी  लगाने  उन्ही  अन-सुलझे  प्रश्नों  के  साथ  अब  उन्ही  को  सौंप  कर  आऊंगा  सारे  सवाल  और  सारी  समस्याएं।
जय  हो  बांके  बिहारी  की !!!!!!
राधे  राधे  मेरे  सभी  मित्रों  को  और  सभी  को  नव  वर्ष  की  और  मकर-संक्रांति   बधाईयाँ !!!!!!



सादर -
मनोज यादव


गुरुवार, 12 जनवरी 2017

तुम तो थी एक कल्पना बस !!!!!!!!!







जिसके लिए सपना बुना था   

सीप  से  मोती  चुना  था
भीगी  पलकों  ने  कहा 
वो  प्यार  मेरा तुम  नहीं  हो 

जिसके  लिये  मैं  था  दीवाना 
सारी  दुनिया  से  बेगाना 
वो  तो  थी  एक  कल्पना  बस 
वो  हक़ीक़त  तुम  नहीं  हो। 

सोमवार, 9 जनवरी 2017

एहसास भला किसको होगा






तपती  धूप  में  चलते-चलते  पड़े  पैर  में  छालों  का
तन्हाई  में  पल-पल  पीते  उन  आँसू  के  हालों का
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास  भला  किसको  होगा,

सूनेपन  को  हरने  वाले  उस  आने  वाले  कलरव  का
किसी  सूखे  पेड़  से  फूट  पड़े  सहसा  एक  पल्लव  का
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास भला  किसको  होगा,

कोई  झरना  सा  फूट  पड़ेगा  सूनी  गोद  भरेगी  धरती  की
पर  क्या  कोई  व्यथा  सुनेगा  अपना  जल  बरसाते  मेघों  की
एहसास  भला  किसको  होगा,  एहसास  भला  किसको  होगा,

उस  पीड़ा  का  उस  आंसू  का  सूनेपन  का  तन्हाई  का
पग-पग  पर  मिलने  वाली  अपनों  से  रुसवाई  का
एहसास  भला  किसको  होगा, एहसास  भला  किसको  होगा ।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

क्या कीमत है उस आंसू की जो भीतर-२ मरता है।





हर  दिन  आँखों  में  एक  सपना  बनता  और  बिखरता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

झूठी  रसमें,  झूठी  कसमें,  रिश्ते  वो  सारे  झूठे  थे,
इकरार  तुम्हारा  झूठा  था, वो  प्यार  तुम्हारा  झूठा  था,
प्यार किया  तुमसे  मैंने  और  तुमने  खिलवाड़  किया,
मैं  ही  एक  पागल  था  जो  मैंने  सब  कुछ  तुम  पर  वार  दिया,
फिर  भी  दिल  के  टुकड़ों  में  तेरा  ही  रूप  उभरता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

क्या  माँगा  था  तुमसे  ज्यादा , बस  साथ  तुम्हारा  माँगा  था,
प्यार  तुम्ही  से  करता  था  और  प्यार  तुम्हारा  माँगा  था,
वो  लोग  भला  कैसे  थे  जिनको  प्यार  के  बदले प्यार  मिला,
हमको  दुःख  की  जागीर  मिली  और  पीड़ा  का  अधिकार  मिला,
कैसे  रोकूँ  उस  भाव  को  मैं  जो  घाव  हृदय  में  करता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।

कहना  बहुत  था  तुमसे,  पर  सुना  नहीं  तुमने,
भूल  क्या  हुई  मुझसे  जो  ये  सिला  दिया  तुमने,
अब  सूनी  हैं  राहें  मेरी,  सूनी  ये  धडकन  है,
तन्हा  है  दर्पण  मेरा  और  तन्हा  जीवन  है,
सोचा   बिसारूँ   तुमको   पर   याद   तुम्ही को  करता  है,
क्या  कीमत  है  उस  आंसू  की  जो  भीतर-२  मरता  है।