शनिवार, 30 जुलाई 2016

तेरी चाह में, मैंने खुद को पा लिया



खुशियाँ  नहीं  मिली  तो  क्या,  ग़मों  को  पा  लिया,
आसमाँ  नहीं  मिला  तो  क्या,  ज़मीन  को  पा  लिया,
मुकम्मल  जहां  नहीं  मिलता,  बखूबी  जानता  हूँ  मैं,
पर  तेरी  चाह  में,  मैंने  खुद  को  पा  लिया ।।



( सारी  जिन्दगी  गुजार  दी  तन्हा,
   उन्ही  लोगों  ने,
   जो  कहते  थे,
   प्यार  नाम  की  कोई  चीज़  नहीं  इस  जहान  में ) 

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

इन बारिश की बूंदों में




जाने  कैसा  गीत  छुपा है,  इन  बारिश  की  बूंदों  में,
जाने  कैसा  साज  सजा  है, इन  बारिश  की  बूंदों में,
प्रेम  गीत  कोई  मैं  लिख  दूँ,  कहता  है  पागल  मन  मेरा,
अंग-अंग  में  खुमार  चढ़ा  है,  इन  बारिश  की  बूंदों  में ।। 

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सजनी मेरे मन का गीत






सावन  में  जब  घनघोर  घुमड़कर

काले  बादल  छाते  हैं 
प्यासी  व्याकुल  धरती  पर  जब 
मीठा  जल  बरसाते  हैं 

वृक्ष  समूह  और  लताएँ 
नए  यौवन  को  पाते  हैं 
कलरव  करते  पक्षी-गण  जब 
झूम-झूम  कर  गाते  हैं 

जब-जब  बारिश  में  भीग  तेरी 
जुल्फों  का  अंजुम  खुल  जाता  है 
कतरा-कतरा  बहता  पानी  जैसे 
मदिरा  बन  जाता  है 

आँखों  के  पैमाने  तेरे  कुछ  और 
नशीले  होते  है 
कुछ  और  गुलाबी  होते  हैं  कुछ  और 
सजीले  होते  हैं 

देख  जिन्हे  हम 
अपने  तन  की 
सारी  सुध-बुध  खो  देते  हैं 

मेरे  मन  में  कोई 
सतरंगी  इंद्र-धनुष  जाता  है  खींच 
जैसे  स्वाती  की  बूंदों  से  पगला 
चातक  करता  है  प्रीत 

सांसों  की  सरगम  पर  गाता  हूँ 
सजनी  मेरे  मन  का  गीत।