अपनी आँखों पर नही होता मुझको यकीं पर
उतर आयी कल्पना मेरे दिल की जमीं पर
उसकी मुस्कराहट एक पहेली थी जैसे
खुद महसूस की उसके होठों को छूकर
सुलझी हुई थी उसकी जुल्फ़ें सुनहरी
उलझ से गये जब गयी हमको छूकर
हर लम्हा साथ उसका ख़्वाब से कम नही है
दुनिया रह गयी उसकी आँखों में सिमटकर
अँधेरी बड़ी हैं मेरी जिंदगानी की गलियां
रोशनी अपनी देना मेरे माहताब बनकर ।।