शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

माँ के लिये - दूसरा मुक्तक











सबसे   पहले   मुख  से  अपने,  माँ  कहना  सीखा  है  माँ
तेरी    ऊँगली  पकड़ -पकड़कर,  धरती पर चलना  सीखा है  माँ
मैं  पला  तेरी   ही   छाया में,  मैं  बढ़ा  तेरी  ही  छाया  में
ये  तन  तुझको  अर्पण  है  माँ,  ये  मन   तुझको  अर्पण  है  माँ ।।




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