ये शाम कभी जब ढलती है
घनघोर अँधेरा छाता है
साया भी अपना अक्सर जब
धूमिल सा पड़ जाता है
तब भी प्यासी इन अंखियन में
बाकि कुछ सपने रह जाते हैं
कोई ख़्वाब छलक कर जब
इन पलकों पर रह जाता है
ऐ चाँद मेरे तब अक्सर तू
मेरी आँखों में बस जाता है,
साँझ की दुल्हन श्रृंगार करे
जब धरती पर आ जाती है
तारों की जब चुनर कोई
जगमग जगमग लहराती है
जब प्रेम गीत कोई अक्सर
वंदन में गाया जाता है
होठों पर तेरे कोई जब
गीत ठहर सा जाता है
ऐ चाँद मेरे तब अक्सर तू
मेरी आँखों में बस जाता है,
जब राधा पायल छनका कर
मधुबन में आ जाती है
पैरों की पैंजनिया जब
छम-छम छम-छम छंकाती है
मोहन की बाँसुरिया जब
होठों से छू जाती है
जब वृन्दावन के आँगन में
रास नया रच जाता है
ऐ चाँद मेरे तब अक्सर तू
मेरी आँखों में बस जाता है।