गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

दिल की बातें समझती नहीं हो !!!









कितनी  मासूम  हो  तुम  हो  जानम
दिल  की  बातें  समझती  नहीं  हो
मैं  तो  हूँ  तेरे  प्यार  में  पागल
तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो,


जबसे  तुम  हो  मुझे  मिल  गयी
सूने  मन  में  कली  खिल  गयी
मैं  सागर  था  बरसों  से  तन्हा
उसको  नदिया  सी  तुम  मिल  गयी,

अब  होने  दो  प्रेम  का  संगम
देर  जाने  क्यों  अब  कर  रही  हो

तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो,

रात  की  चांदनी  के  तले
आस  का  एक  दीपक  जले
आँख  के  मोतियों  सा  छलक  कर
पलकों  पर  एक  सपना  पले,

देखो  बेचैन  मैं  हो  रहा  हूँ
तुम  भी  करवट  बदल  तो  रही  हो
तुम  हो  पगली  समझती  नहीं  हो।




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