गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सजनी मेरे मन का गीत






सावन  में  जब  घनघोर  घुमड़कर

काले  बादल  छाते  हैं 
प्यासी  व्याकुल  धरती  पर  जब 
मीठा  जल  बरसाते  हैं 

वृक्ष  समूह  और  लताएँ 
नए  यौवन  को  पाते  हैं 
कलरव  करते  पक्षी-गण  जब 
झूम-झूम  कर  गाते  हैं 

जब-जब  बारिश  में  भीग  तेरी 
जुल्फों  का  अंजुम  खुल  जाता  है 
कतरा-कतरा  बहता  पानी  जैसे 
मदिरा  बन  जाता  है 

आँखों  के  पैमाने  तेरे  कुछ  और 
नशीले  होते  है 
कुछ  और  गुलाबी  होते  हैं  कुछ  और 
सजीले  होते  हैं 

देख  जिन्हे  हम 
अपने  तन  की 
सारी  सुध-बुध  खो  देते  हैं 

मेरे  मन  में  कोई 
सतरंगी  इंद्र-धनुष  जाता  है  खींच 
जैसे  स्वाती  की  बूंदों  से  पगला 
चातक  करता  है  प्रीत 

सांसों  की  सरगम  पर  गाता  हूँ 
सजनी  मेरे  मन  का  गीत।


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