शनिवार, 25 नवंबर 2017

कहाँ पर वो है तेरे सपनों की मंजिल ।।



कई  ख़्वाब  छूटे  कई  ख़्वाब  टूटे
अपने  थे  जो  भी  सभी  हमसे  रूठे
इन  आँखों  ने  देखा  है  फिर  कोई  सपना
दूर  तलक  है  ना  कोई  भी  अपना,

निकल  पड़ा  हूँ  मैं  फिर  बन  मुसाफिर
तुमको  ही  पाने  तुम्हारी  ही  खातिर
ये  अनजान  राहें  ये  अनजान  महफ़िल
बढ़  सी  गयी  जिंदगानी  की  मुश्किल,

बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की मंजिल,

आँसू  बहुत  हैं  इन  आँखों  से  बिखरे
हर  पल  ही  तुझको  ठुकराया  गया  है
ख्वाबों  का  कोई  एक  खंडर  सा  है  तू
हसरतों  को  जिनमें  दफनाया  गया  है,

फिर  भी  हैं  बाकि  कुछ  दिल  में  उम्मीदें
कुछ  सपनों  की  खातिर  ये  जागी  सी  नींदें
फिर  से  कुछ  ख्वाबों  की  आँखों  में  झिलमिल
फिर  वो  ही  बेचैनी  फिर  वो  ही  मुश्किल,

बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की  मंजिल,

घाव  तो  अब  तक  भरे  ही  नहीं  थे
हर  पल  ही  उनको  कुरेदा  गया  है
कभी  आंसुओं  से  कभी  सिसकियों  से
हर  पल  में  उनको  समेटा  गया  है,

मालूम  है  तुझको  ये  अंजाम -ए- उल्फत
फिर  भी  गुनाह  तू  ये  करने  लगा  है
होती  नहीं  है  ज़मीन  भी  मयस्सर
वफ़ा  चाँद  से  फिर  भी  करने  लगा  है,

आना  ही  पडेग़ा  ख्वाबों  से  उतरकर
होगा  अगर  इन  लकीरों  में  शामिल,

 बतला  दे  मुझको  अब  तो  मेरे  दिल
कहाँ  पर  वो  है  तेरे  सपनों  की  मंजिल ।।



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