शुक्रवार, 4 मार्च 2016

ओ मेरे पगले मुसाफिर !!!


 
 
 
 
 
 
 
 
 
लो  गयी   किरणें  रवि  की  साँझ  के  बादल  है  छाए
चाँद  की  इस  चांदनी  में  दीप  जगमग  झिलमिलाये
लौट  कर  आ  जाओ  अब  तो  ओ  मेरे  पगले  मुसाफिर
देखो  सुबह  निकले  थे  जो  पंछी  घरों  पर  लौट  आये ।।

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