क्या कहना इन रंगों का
क्या कहना इन रंगों का
भाग्य गज़ब के पाये है
हम जिन गालों से दूर रहे
ये उनको छूकर आये हैं,
घोल-२ कर रंग प्रेम का
खेलन आये मोहन होली
सखियों संग घेरा राधा ने
मोहन के संग चली होली,
गुलाल उड़ा वृन्दावन में
बरसाने में जमकर रंग बरसा
देख श्याम की मोहनी सूरत
गोपियों का मन हर्षा,
कान्हा संग होली खेलन के
ग्वालों ने भाग्य जो पायें हैं
हम जिन गालों से दूर रहे
ये उनको छूकर आये हैं,
हम जिन गालों से दूर रहे
ये उनको छूकर आये हैं,
फाल्गुन की इस मस्ती में
जमकर रंग-गुलाल उडाओं
प्रेम मिला कर रंगों में
बिछड़े अपनों को गले लगाओ
ऐसा रंग चढ़े मन पर
जो चढ़कर फिर वो उतरे ना
अपना जब बन जाये कोई
फिर मिलकर हमसे बिछड़े ना,
मीठी-२ घुझियों के भी
स्वाद गज़ब के छाएं हैं
हम जिन गालों से दूर रहे
ये उनको छूकर आये हैं।
हम जिन गालों से दूर रहे
ये उनको छूकर आये हैं।
सादर -
मनोज यादव
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