शनिवार, 30 अप्रैल 2016

वृँदावन बनवाइये (मुक्तक )



राधा  बन  आये  गोरी  यमुना  के  तट  पर
श्याम  बनकर  खुद  बंसी  बजाइये
प्रेम  रहे  चारों   ओर   प्रेम  बसे  चारों  ओर
घर  को  ही  मिल  वृँदावन  बनवाइये ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें