शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

बसंतोत्सव की सभी को हर्दिक शुभकामनाएँ एवं माँ शारदे को नमन एवं वन्दन् !!!!!!!




बसंत  की  बगिया  में

देखो  कैसा  गीत  सजा  है
इस  बसंत  की  बगिया  में,

कुहकी  कोयलिया  मतवाली
पुरवाई   लहराई  है
महकी  ख़ुश्बू  आँचल  में  ये
अपने  भर  कर  लायी  है
भँवरे  ने  फिर  गुंजन  की
कली-कली  मुस्कायी  है,

देखो  कैसा  रूप  सजा है
इस  बसंत  की  बगिया  में,

झूम  उठा  कवि-कोमल  मन
आमों  पर  बोरें  आई  हैं
हरियाली  छायी  वृक्षों  पर
कोमल  पत्ती  लहराई  है
तितली  फिरती  है  फूलों  पर
पीली  सरसों  लहराई  है



देखो  कैसा  विश्वास  जगा है
इस  बसंत  की  बगिया  में,

तम  के  बादल  छंटते  ही
प्रकाश  धरा  पर  छाता है
पतझड़  का  साया  हटते  ही
ऋतुराज  धरा  पर  आता  है
दुःख  की  ऋतु  के  बीतते  ही
फिर  सुख  का  मौसम  आता  है

नव  आशा  का  उजवास  छुपा  है,
इस  बसंत  की  बगिया  में ।।




























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