रविवार, 28 फ़रवरी 2016

कवि परिचय:- अवधी कवि माननीय इन्द्रेश जी एवं आपराधिक प्रवृत्तियों पर उनकी रचना



कवि परिचय:- अवधी कवि माननीय इन्द्रेश जी एवं आपराधिक प्रवृत्तियों पर उनकी रचना 

अवध क्षेत्र व नेपाल के कई जिलों में बोली जानी वाली अवधी भाषा के कवि इंद्र कुमार सिंह उर्फ इंद्रेश सिंह भदौरिया का जन्म अवधी भाषा के गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली जिले के हरचंदपुर ब्लाक के कठवारा ग्रामसभा के मोहम्मदमऊ गांव में हुआ है। उत्तर प्रदेश राज्य कताई कम्पनी लिमिटेड में कार्यरत रहे इंद्रेश भदौरिया अवधी भाषा के गीतकार व कवि है। 
अवध ज्योति के सम्पादक व अवध भारती समिति के महामंत्री डाïॅ. रामबहादुर मिश्र ने उनकी कविताओं को देखते हुए अवधी भाषा के महान कवि 'रमई काकाÓ की स्पष्टï छाप दिखने की बात कहीं है। अब तक उनके गीत गंगा, नखत-3 व बस यहै मड़इया है हमारि के काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक काव्य संग्रह अभी अप्रकाशित है। समय-समय पर उनके लेख अवधी भाषा के एक दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। उनकी प्रतिभा को देखते हुए अब तक उन्हें प्रगति पत्रिका के दस अंकों में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठï रचनाओं पर प्रथम पुरस्कार, प्रज्ञालक मोहम्मदी खीरी द्वारा समस्यापूर्ति उसपार के समादर में तृतीय पुरस्कार का सम्मान मिला है। प्रतिभा अनुसंधान परिषद द्वारा रायबरेली रत्न सम्मान, नगरपालिका परिषद ने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान व अवध भारती समिति हैदरगढ़ की तरफ से अवध श्री का सम्मान प्राप्त हुआ है। 

पंचो, आज के हालातों पर अवधी मा एकु गजल जेहिका नाव है---





यहु हमार जिउ जानत है
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कइसे कइसे काम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
दुस्मन का बदनाम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
अनसन अउर पदरसन कीन्हा हमहूँ भासन झाड़ेन है,
रेल का चक्का जाम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
अंइचि घसोटे जउनै पावा बड़े पिरेम से खावा है,
जनता का नाकाम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
दुसरेन पर आरोप मढ़ेन है किहिन नहिंन है काम कुछौ,
हमहूँ केतना काम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
चोरी- हत्या- राजनीति सब कुछ करि डारा जीवन मा,
भृस्टाचार तमाम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
लगा के गुण्डा सरे आम चौराहेन पर मरवायेन है/
मिले तुरत जय राम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/
अगर कहूँ पर कउनेव कारन कउनो झटका खाय गयेन,
तुम्हरिउ नींद हराम कीन है यहु हमार जिउ जानत है/

इन्द्रेश भदौरिया*रायबरेली*
 






4 टिप्‍पणियां:

  1. अवधी भाषी अवधी भाषा ॥
    आगे आगे चलत रहय ॥
    गाँव हमार बढ़ चढ़ के ॥
    खूब तरक्की करत रहय ॥
    माई ममता हिया विखेरय ॥
    खूब दुलारै पूत ॥
    बाबू परदेसवा से आवय ॥
    लावय शूट अव बूट ॥
    सब कै घर महला दुइ महला ॥
    हरदम हिया पय बनत रहय ॥
    पढ़ै जाय बेटवा बिटिया सब ॥
    ग्रहण करय सब शिक्षा ॥
    जोगी आवय जबय दुवारे ॥
    पावय पूरी भिक्षा ॥
    खेती बारी काका दादा ॥
    सच्चे मन से करत रहय ॥
    गाँव हमार बढ़ चढ़ के ॥
    खूब तरक्की करत रहय ॥

    शम्भू नाथ कैलाशी

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