गीत
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के
अपने चपल नयनों में गोरी,
कर काजर का यूं श्रृंगार,
अधरों पर यूं मुस्कान बिखेर,
के ज्यों लागे मोतियन के हार,
और गुलाबी चेहरे पर, मतवाली लट बिखेर के,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……
तेरी जुल्फों के साए में जिन्दगी सुहानी लगती है,
पीपर की छाया भी हमको स्वर्ग सरीखी जंचती है,
कोयल की हर कूक मेरे मन को घायल कर जाती है,
तितली मन की बगिया में रंग नए भर जाती है,
और पवन बसंती का हर झोंका जैसे जाता है कोई तरंग छेड़ के,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……
सजनी खंजन से ये नैन तेरे मेरे हृदय को भेदित करते है,
कानों के झुमके तेरे गालों से ठिठोली करते हैं,
तेरे चेहरे की गरिमा से मेरा तन-मन पिघला जाता है,
तेरे नूपुरों का स्वर जैसे कोई मधुर गीत सा गाता है,
तेरी वाणी का हर एक बोल जैसे जाता है, कानों में मिसरी घोल के ,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……
तेरे साथ ही मैं अपना संसार बसना चाहता हूँ ,
जीवन का हर एक गीत मै तेरे संग गाना चाहता हूँ ,
वीरानी लगती हैं तुम बिन मेरे मन की सारी गलियाँ ,
मेरे दिल के बागीचे की सारी कुंजन सारी कलियाँ ,
साज़ रहित मेरे जीवन में, तुम चली आओ नयी प्रेम धुन छेड़ के ,
तुम चली आओ चुनर प्यार की ओढ़ के.……
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