मैं हिन्द का निवासी हूँ,
हिंदुत्व मेरा धर्म है,
राज-भाषा का प्रहरी हूँ,
हिंदी सेवा मेरा कर्म है।
शनिवार, 7 मई 2016
मिली तन्हाइयाँ मुझको ( मुक्तक )
मिली खामोशियाँ मुझको मिली परछाइयाँ मुझको
मिली बैचेनियाँ मुझको मिली रुसवाईयाँ मुझको
जो चाहा था नहीं मुझको मिला है वो ही जीवन में
मिली तन्हाइयाँ मुझको मिली वीरानियाँ मुझको ।
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