रविवार, 8 मई 2016

ना जाने लोग प्यार करते क्यों हैं ( कविता )





कितनी  दर्द  भरी  हैं
मोहोब्बत  की  राहें
फिर  भी  ना  जाने  लोग
गुजरते  क्यों  हैं,


जब  प्यार  निभाना 
आता   ही   नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
प्यार  करते  क्यों  हैं,


दिल  तो  दिल  होता  है 
किसी  का  कोई  खिलौना  नहीं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग 
दिल  तोड़ते  क्यों  हैं,


कस्में  खाते  हैं
सात  जन्मों  तक  साथ  निभाने  की
 फिर  भी  ना  जाने  लोग
साथ  छोड़ते  क्यों  हैं,

कोई  तो  जान  देता  है 
उनकी  एक  मुस्कराहट  पर 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उससे  मुँह  फेरते  क्यों  हैं,

दुनियां  है  पैसे  वालों  की  साहब 
ग़रीब  के  पास  तो  बस  जज़्बात  हैं 
फिर  भी  ना  जाने  लोग
उसके  जज्बातों  से  खेलते  क्यों  हैं ।

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अज़ीब  कश्मकश  रही  दोस्तों
अपनी  अधूरी  कहानी  में,



"उनको  चाहिए  थी  महलों  की  रंगीनियाँ 
और  हमारे  पास  अपने  अरमाँ  ही  थे  सजाने  को 

उनकी  ज़िन्दगी  में  कमी  थी  रोशनी  की 
और  हमारे  पास  अपना  दिल  ही  था  जलाने  को "









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