सोमवार, 1 मई 2017

रहते हैं जाने कहाँ पर वो - ग़ज़ल








रहते  हैं  जाने  कहाँ  पर  वो  आज  कल
एक  हम  ही  हैं  जिसको  ख़बर   नहीं  मिलती

तड़प-२  कर  कट  रहा  लम्हा  इंतज़ार  का
इंतज़ार  के  इस  लम्हे  को  उम्र  नहीं  मिलती

सामने  जब  आते  हैं   हमारे  वो  कभी-कभी
आँखें  उठती  है  पर  नज़रों  से  नज़र  नहीं  मिलती

मोहोबत  का  नूर  है  उनके  चेहरे   पर  भी
ख्वाबों  को  बस  इतनी  हक़ीक़त  नहीं  मिलती ।।



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