शनिवार, 27 मई 2017

" कल्पना " बख़ूबी जानता हूँ मैं !!!




" कल्पना "  बख़ूबी  जानता  हूँ  मैं  तुम  चाँद  हो  फ़लक  के
छू  लूँ  तुमको  ये  हक़  हमारा  तो  नहीं 

कितनी  तंमन्नाएँ  मचलती  हैं  इस  दिल  में  रात-दिन 
फिर  भी  कभी  आवाज़  देकर  तुमको  पुकारा  तो  नहीं 

बंदा  हूँ  मैं  भी   नेक  दिल  का  बात  मेरी  भी  सुन  लो 
हाल  भी  ना  पूछो  हमसे  हमारा   इतना  आवारा  तो  नहीं 

एक  अदना  सा  परिंदा  हूँ  मैं  धरती  पर  बसने  वाला 
चूम  लूँ  आसमाँ   को  ऐसा  कोई  ख़्वाब  हमारा  तो  नहीं । 

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