बुधवार, 24 मई 2017

तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.



ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही!
ओ  अमलताश  की  अमलकली
धरती  के  आतप  से  जलते
मन  पर  छाई  निर्मल  बदली.
मैं  तुमको  मधुसदगन्ध  युक्त  संसार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  मुझको  करना  माफ  तुम्हे  मैं  प्यार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  कल्पव्रक्ष  का  फूल  और
मैं  धरती  का  अदना  गायक
तुम  जीवन  के  उपभोग  योग्य
मैं  नहीं  स्वयं  अपने  लायक
तुम  नहीं  अधूरी  गजल  शुभे
तुम  शाम  गान  सी  पावन  हो
हिम  शिखरों  पर  सहसा  कौंधी
बिजुरी  सी  तुम  मनभावन  हो.
इसलिये  व्यर्थ  शब्दों  वाला  व्यापार  नहीं  दे  पाऊँगा
तुम  मुझको  करना  माफ  तुम्हे  मैं  प्यार  नहीं  दे  पाऊँगा.


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