बात बस हमारी कविताओं की इतनी सी है,
अब मैं तुमको कैसे बताऊँ की मेरी सारी कविताएं बस तुम से हैं और बस तुम्हारे लिये और तुम ही मेरी कल्पना हो,
और मेरी कल्पना तुम हो ही इतनी ख़ूबसूरत है की मैं कविताओं में नहीं बस अपनी कल्पना में ही खोया रहता हूँ,
और तुम खुद एक जीती-जागती कविता हो , भला मैं तुम पर क्या कविता लिख पाउँगा,
तुम्हारी मुस्कराहट खुद एक कविता है, किसी झरने की तरह बहती, मन में हलचल मचाती, तन को शीतल करती,
तुम्हारी मुस्कराहट कविता की पंक्तियों की तरह खूबसूरत, सीधा दिल की गहराईयों में उतर जाने वाली,
अपनी सुध नहीं रहती जब तुम्हे मुस्कुराता देखते हैं,
तुम्हारी आँखें खूबसूरत ग़ज़ल सी, जिनमें नज़ाकत है, हया है, फ़िज़ा है, नशा है,
मदहोश कर देने वाली तुम्हारी वो नजरें,
ना किसी साक़ी की ज़रूरत है ना मैख़ाने की
ना जाम की ना पैमाने की ............
जब भी देखती है हमारी तरफ मदहोशी सी अपने आप छाने लग जाती है, एक अज़ब सा नशा सारे बदन में उतरने लगता है,
सुरूर सा छा जाता है, दिल झूमने लगता है और मन का गीत हमारा ग़ज़ल गाने लगता है,
होंठ तुम्हारे किसी खूबसूरत शायरी की तरह दो शब्द भी बोल दें तो हमें मतलब समझने में भी बरसों लग जायें,
बोलते हैं तो फिर भी ठीक हैं पर कभी-कभी बिना बोले भी बहुत कुछ बोल जाते हैं तो उसको समझने में बड़ी तकलीफ होती है।
बेहद खूबसूरत दो लफ़्ज़ों की शायरी और उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत उनके दो प्यारे से सुर्ख गुलाबी होंठ !!!
जितना कुछ भी मैंने अभी लिखा ये सब तो कुछ भी नहीं, तुम्हारा इतराना, तुम्हारा बलखाना, तुम्हारा हसना, तुम्हारा बोलना, तुम्हारा देखना, तुम्हारा मुस्कुराना,
तुम्हारी हर एक अदा पर हर एक शोख़ी पर ना जाने कितनी कविताएं, ना जाने कितनी ग़ज़ल मैं लिख भी दूँ , तब भी मुझे हमेशा यही लगता है और लगता रहेगा की तुम्हारी खूबसूरती बहुत ज्यादा है और मेरे पास उसे बयां करने के लिए शब्द बहुत कम।
ख़ामोशी को जुबाँ देने के लिए हमारे पास बस हमारी कलम ही तो है जब जब उनको देखता हूँ हर बार ऐसा लगता है जैसे मैं उन्हें पहली बार देख रहा हूँ,
पता नहीं यहाँ पर गलती मेरी कल्पना की है या मेरी कविताओं की .....................